अंधे / नेत्रहीन लोग कैसे पढ़ते लिखते है ?? ब्रेल लिपि

( How blinde People Read & Write by using Braille Language )


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     दोस्तों कुदरत ने हमें कई वरदान दिए हैं। उनमें से एक वरदान है आंखे। आंखे जिससे हम पूरी दुनिया को देख सकते हैं। महसूस कर सकते हैं काम कर सकते हैं। चल फिर सकते हैं। सब कुछ पढ़ लिख सकते हैं। TV भी देख सकते हैं। लेकिन सोचिए जिन लोगों की आंखें नहीं होती उनका क्या होता होगा। जिन लोगों की आंख दृष्टि नहीं होती, वे कैसे पढ़ लिख सकते होंगे? तो नेत्रहीन लोगों की पढ़ने लिखने की समस्या का हल होता है ब्रेल लिपि। ब्रेल लिपि का इस्तेमाल करके अंधे लोग पढ़ते और लिखते भी हैं। इस ब्रेल लिपि की क्रांतिकारी खोज करनेवाले महान अविष्कारक का नाम था फ्रेंच शिक्षक लुइस ब्रेल ।

  
          अगर कोई इंसान अंधा हो तो वह किताबें नहीं पढ़ सकेगा। ज्ञानार्जन करने का एक महत्वपूर्ण साधन वह खो देगा। इस बड़े प्रश्न का हल निकलने का प्रयत्न इंसानों ने बहुत पहले से शुरू किया थे | ईसवी सन 1757 में लकड़ी के टुकड़े पर तराषी हुवी लिखावट उंगलियों के स्पर्श से नेत्रहीन व्यक्ति पढ़ रहा है ऐसे सबुत मिलते है।
जिस मनुष्य के विशेषत: अंध मनुष्य के उंगलियों की संवेदना बाक़ी अंगों की संवेदना बहुत अच्छी रहती है। उंगलियों की संवेदना बहुत अच्छी रहती है। इस का गाढा निरीक्षण व अभ्यास बहुत वर्षों से शुरू था।  क्योंकि इन अक्षरों की मदद से नेत्रहीन व्यक्ति पढ़ सकती थी। पर लिख नहीं सकती थी। इस लिपी की वजह से उस व्यक्ति को तराषी हुवी लिखावट पढ़ते आयी। फिर भी उस व्यक्ती के मन के विचारों का प्रगटीकरन मुमकिन नहीं था।

   लुइस ब्रेलने  बचपन में ही खो दी थी आँखे 
           लुइस ब्रेल / Louis Braille का जन्म फ्रांस के कूपवराय में हुआ था।  जो पच्छिमी पैरिस से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। उनकी माताजी का नाम मोनिक्यु था , और पिताजी का नाम साइमन-रेने था। वे  कुछ हेक्टर्स की जमीन पर रहते थे। उनके पिताजी उस वक्त के नामचीन उद्योगपति थे, रुतबा भी अच्छा था । घर में किसी चीज की कमी न थी।  इसकी वजह से लुइस का बचपन अच्छी तरह से गुजर सकता था ।  पर बचपन के दिनों में हुवे एक हादसे ने बदनसीब लुइस की जिंदगी पूरी तरहसे बदल डाली।  हुवा यु की ३ साल की उम्र में किसी लकड़ी को काट रहे थे।  तभी अचानक वह लकड़ी का टुकड़ा उछलकर नन्हे लुइस की आँख में जा घुसा।  खून बहने लगा। वे घर आये।  आखो से टुकड़ा निकाला गया पट्टी कराइ गई।  उन्हें लगा कुछ दिन बाद आंख ठीक हो जाएगी।  पर वैसा नहीं हुवा।  उल्टा आँख का इन्फेक्शन बढ़ता गया।  दूसरी आँख भी ख़राब हो गई।  और लुइस पूरी तरह से अंधे हो गए।  इसका कारन उनके पिताजी की लापरवाही थी। जिसकी बजह से लुइस ब्रेल की जिंदगी में अन्धेरा छागया।
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 ब्रेल लिपि का आविष्कार
           ब्रेल के नेत्रहीन होने पर उनके पिता ने उन्हें पॅरिस के रॉयल नॅशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिलड्रेन  में भर्ती किया। लुइस सिर्फ आँखों से कमजोर था पर उनका दिमाग बाकि चीजोमे बहोत तेज था। अपनी प्रतिभा से उन्होंने वहाके अध्यापको को प्रभावित कर दिया था।  उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी।इस विद्यालय में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कॅप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के लिये आये।  उन्होंने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़ी जाने वाली "नाइट राइटिंग" / सोनोग्राफी" लिपि के बारे में व्याख्यान दिया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी।  और इसमें १२ बिंदुओं को ६-६ की दो पंक्तियों को रखा जाता था।  पर इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि नहीं होते थे।   इ. स. 1729 में लुइस ब्रेल अंधे व्यक्ति ने जो कि खुद जो कि खुद नेत्रहीन बच्चो का शिक्षक था उन्होंने एक पद्धति की खोज कि।ब्रेल को वहीम से यह विचार आया।   जिससे अंधो को पढ़ने और लिखना भी आने लगा।  लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र १५ वर्ष के थे।  सने एक सीधा-साधा उपकरण तैयार किया। इस पद्धति में एक लंबे चौकोर लकड़ी के टुकड़े पर ऊपर खुल के आए हुए बिंदु लगे हुए रहते हैं। उन बिंदुओं की संख्या अनुसार व जगह अनुसार भाषा के अक्षर निश्चित किए जाते है।  इससे इसकी कुल 64 रचनाओं में प्रश्नार्थक चिन्ह,  विराम चिन्ह, और भाषाई चिन्ह, अंक उसमे बिठाये हुए हैं। इसे ब्रेल लिपि कहते हैं । लुई ने इसी लिपि पर आधारित किन्तु १२ के स्थाण पर ६ बिंदुओं के उपयोग से ६४ अक्षर और चिह्न वाली लिपि बनायी। उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है।

                 ब्रेल लिपि का इस्तेमाल कर के नेत्रहीन लोग पढ़ने का और लिखने का आनंद लेते हैं। इस लिपि में अखबार किताबें मेगसिन भी निकलते हैं।  ब्रेल लिपि टाइप करने का टाइप राइटर भी होता है। नेत्रहीनो के लिए ब्रेल लिपि एक वरदान साबित हुई है। लुइस ब्रेल के जन्मको अब 200 वर्ष से ऊपर का समय हो चूका है। हमारे भारत सरकार ने २००९ में लुइस ब्रेल के सन्मानवश एक डाक टिकिट जारी किया था। नेत्रहीन व्यक्तियों के जीवन में बदलाव की उमंग पैदा करने वाले लुइस ब्रेल जैसे से महान अविष्कारक का कार्य सचमुच सराहनीय है।

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