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पेंग्विन पक्षी एक समुद्री पक्षी होता है। यह साउथ इक्वेडोर में पाया जाता हैं। साउथ इक्वेडोर यानी अंटार्क्टिका खंड जो पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है वहां का तापमान- 30-40 डिग्री सेल्सियस होता है। दक्षिणी गोलार्ध में इनकी बसती है। पृथ्वी के अंटार्टिका प्रदेश में अफ्रीका प्रदेश में किसी अन्य पक्षियों का रहना कठिन है। पर इन प्रजाति के पेंग्विन पक्षी वहां निर्वेद रह सकते हैं। पेंग्विन पक्षी का आकार बडा होता है। इनको पंख होते हैं। पर यह दूर तक उड़ नहीं पाते। बोने पैर के और सीधे तनकर खड़े रहकर जमीन पर चलने वाले होते है। जब वे खड़े रहते हैं तब किसी काले कोट और सफेद शर्ट पहनकर खड़े हुए मनुष्य की भांति दिखते हैं। छोटे पैर के और सीधे तन कर खड़े रहकर जमीन पर जब उनको तेज चलना होता है, तब वे पेट पर गिर के या बैठ कर चलाते हैं। पानी में वे उनके पंखों का उपयोग करके कोई टोरपॅडो छुटता है वैसे जा सकते हैं।
फिलहाल पूरी दुनिया में इन इस पक्षी की कुल 16 जातियां पाई जाती है। ज्यादातर इनकी पीट आसमानी नीले रंग की या कराडिया रंग की होती है। इनमें नर और मादा पेंग्विन दिखने में एक जैसे ही होते हैं। इन पंछियों का वजन ज्यादा होने की वजह से वे पानी में डूब भी सकते हैं। इनमें से जेष्ठ नर पेंग्विन 700 से 900 फीट गहराई में जाकर 8:00 से 9:00 मिनट तक पानी में रह सकता है। ये पानी में या किनारे पर रहते हैं और मछलियां उनका भोजन है। एंपारर जाति के पेंग्विन अंटाटि्रका में रहते हैं। उष्णकटिबंध के पक्षी स्थलांतर नहीं करते। उनकी जातियां सर्दियों में थोड़ा उत्तर की तरफ जाती है ऐसा पाया गया है। एम्परर, राॅक हाइपर, अॅडेली, जॅकास आदि इनकी जातियों के नाम हैं। इनमें से एम्परर प्रजाति का पक्षी पेंग्विन आकार में सबसे बड़ा होता है। इसकी खड़े रहने रहकर ऊंचाई 39 इंच यानी गरीब तक होती है।अति दक्षिण में वे घकोंदा बनाता है। अंडे देता है उस वक्त उसे 40 डिग्री सेल्सियस - 40 तापमान जोर की आंधी तूफान भारी बर्फबारी और खाने की कमी ऐसी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पेंग्विन पूरी दुनिया के लिए एक अजीब चीज है। क्योंकि वह और पंछियों से आकार मे, दुर्मिलता, आदतें इनसे सबसे अलग है।
पेंग्विन इटली, अर्जेंटीना और साउथ अफ्रीका इन देशों में भी पाए जाते हैं। एम्परर पेंग्विन देश की सबसे कॉमन प्रजाति है। पीला आंखों वाली पेंगुइन ओ हीरो लुप्तप्राय न्यूजीलैंड के निवासी है । माना जाता है कि उनकी आबादी करीब 4000 है । नॉर्थ पेंग्विन दुनिया में सबसे प्राचीन प्राणियों में से एक माने जाते हैं । यह 40 मिलियन साल पहले भी धरती पर रहते थे । जब उनके प्राचीन कंकाल को पाया गया तो यह आज के समय के मुकाबले काफी ज्यादा बढ़ा था । यह 5 फुट तक लंबा था। पेंग्विन का सामान्य शरीर का तापमान लगभग 38 डिग्री सेल्सियस होता है। पेंग्विन मीठा या सुगंधित स्वाद का स्वाद नहीं ले सकते सिर्फ खट्टा और नमकीन वाले चीजों का ले सकते हैं। पेंगुइन भोजन के रूप में कंकड़ और पत्थर भी निगल जाते हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि इन पत्थरों से उनकी पाचन क्रिया तेज हो जाती है , पेंग्विन के दांत नहीं होते हैं इसकी बजाय और चोंच का भक्ष्य पकड़ने और शिकार करने के लिए प्रयोग करते हैं। पेंगुइन के पास एक अंग है जो पानी से नमक को अपने सिस्टम से बाहर निकालता है।
हाल ही में भारत के मुंबई शहर में पार्क में पेंग्विन लाए गए हैं। उनके लिए उनको सूटेबल वातावरण का निर्माण कया किया गया और वह यहां अच्छी तरह से रहने लगे। अब आपको पेंग्विन देखने के लिए अंटार्टिका या आक्ट्रीका खंड जाने की जरूरत नहीं। आप भारत में भी उसका दर्शन कर सकते हैं।
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पेंग्विन के बारेमे कुछ रोचक तथ्य
* पेंग्विन की गणना वैसे पक्षियों में की जाती है पर वे उड़ नहीं सकते है। वजन और आकार में सबसे बड़ी बैंग्विनीम पेंग्विन की प्रजाति है। जिसकी हाइट 4 फीट और वजन 32 किलो तक होता है। और सबसे छोटी प्रजाति होती है little blue जिसके हाइट 20 सेंटीमीटर और वजन 1 किलो तक होता है। कहा जाता है
पेंग्विन की गर्भधारण सिमा २० साल तक होती है।
* पेंग्विन पक्षी 800 मीटर से अधिक की गहराई में डुबकी लगाने में सक्षम होते है और 27 मिनट तक पानी के नीचे रह सकता है। पेंगुइन कई प्रकार के मछली और अन्य सिल अदि को खाते हैं। जिन्हें वे पानी के नीचे पकड़ते हैं। एक बड़ा पेंग्विन एक बार गोत लगनेके बाद एक बार में 30 मछलियां पकड़ लेते हैं।
* पेंग्विन अपने बच्चों के बाप पानी मे बार-बार फेंकते हैं ; जब तक की बच्चों को तैरना नहीं आ जाता।
जब पेंगुइन की मां एक बच्चे को खो देती है तो वे कभी-कभी एक और मां की बच्चे को चोरी करने का प्रयास करते हैं।
* अफ्रीकन पेंग्विन को jackass पेंग्विन भी कहा जाता है। क्योंकि उनकी आवाज देते कि आवश्यक तरह होते हैं न्यूजीलैंड में oiho हो नाम की पेंग्विन की प्रजाति है जो दुनिया सबसे कम आबादी वाली प्रजाति है।
ये दिखने में अनोखे है क्योंकि इस प्रजाति के पेंग्विन के आंखे पीले रंग की होती है। इसलिए इसे Yellow eyed pegvins भी कहा जाता है।
* एक पेंग्विन अपनी पूरी जिंदगी का 75 % हिस्सा पानी में रहकर बता देता है और पानी में रहते हुए वे सिर्फ शिकार करता रहता है। अधिकतर पेंग्विन भिन्न-भिन्न जगहों पर 15 माइल्स पर आवर यानी 1 घंटे में लगभग 24 किलोमीटर का सफर कर सकते हैं। पानी के अंदर 20 मिनट तक सांस रोक सकती है एंपोरोर पेगविन समुंदर के अंदर 1870 फीट की गहराई तक जा सकते हैं। और पानी के ऊपर 6 फीट तक चलांग मर सकते है ।
* अंडे को रक्षा की जिम्मेदारी नर की होती है ।अपने नरम पैरों से अंडे को गर्म रखता है और जब तक अंडे से शिशु पैदा ना हो जाए यह उसी अवस्था में महीनों तक बने रहते हैं। यहां तक कि इस दौरान भी खाने के लिए भी कहीं नहीं जाते। मादा अंडा देने के बाद अंडे को अपने नर के पास छोड़ जाती है और नर हो अंडे को पैरों पर रखकर अपने पेट के कवर से ठंड से बचा के रखता है।
*साल 2008 में नॉर्वेने एक पेंगुइन को नाइट की पदवी दी थी । 1 साल बाद 2009 में शिकारियों से छोटे पेंगुइन की एक कालोनीकी रक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया में सैनिक तैनात किए गए थे ।
* एंपरर पेंगुइन तूफान से बचने के लिए चेहरे पर बालों की परत होती है। 1 इंच की शरीर पर बालों की मोटी परत होती है। पेंग्विन पंखों फ्लीपर्स कहा जाता है जो तैरने में काम आती है।
* ध्रुवीय प्रदेश में जमी हुवी बर्फ में लगभग ३० % बर्फ पेंग्विन्ग के मूत्र से बनी हुवी होती है।
* पर समुंदर का नमकीन पानी पीने की क्षमता होती है क्युकी की इनके के शरीर में सुप्राऑर्बिटल ग्लैंड नाम की एक स्पेशल ग्रंथि होती है ।पानी को फिल्टर करती हैं और नमक को तरल पदार्थ के रूप में नाक से बाहर निकाल देती है। पृथ्वी पर हर 50000 पेंग्विन में एक ब्राउन कलर की मतलब भूरे रंग की पेंग्विन पाई जाती है।
* पेंग्विन एक दूसरे से शक्ल से नहीं बल्कि आवाज से पहचानते हैं। पेंग्विन के आंखों के रचना व् आकार अनोखे होती है क्योंकि उन्हें जमीन से ज्यादा पानी के नीचे साफ दिखाई देता है।
* पेंग्विन की पानी में तैरनेकी की स्पीड 27 किलोमीटर पर आवर है। पेगवीन 1 साल में लगभग 350 किलोमीटर की पदयात्रा करती हैं।
* पेंग्विन की टीमवर्क काफी बड़ीया होतो है। बर्फीले तूफान और ठंड से बचने के लिए विभिन्न समूह बनाकर एक दूसरे को चिपक कर खड़े रहते हैं। और बारी-बारी से हर एक सिविल को ग्रुप के बीच की गर्म आजमाने का मौका दिया जाता है। ऐसा करके पेंग्विंस माइनस 80 डिग्री ठंड का सामना कर पाती है।
* पेंग्विन अपनी ऊर्जा बचाने के लिए पेट के बल फिसल के चलती है और इसे Tobogganing कहते हैं
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