क्या आप जानते है रडार क्या होता है?


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           दोस्तों फोटो मे जो यंत्र  आपको दिख रहा है उसे रडार कहते हैं। बहुत से लोगों को इसे क्या कहते हैं इसका क्या कार्य होता है यह कैसे काम करता है इसका पता नहीं होता। तो आज इसी रडार के बारे में जानते हैं। रडार एक ऐसा यंत्र है , जो हमें स्थिर और हिलने वाली ऐसी सभी चीजों की सही लोकेशन दिखाता है। वैसे रडार यह रडार का कोई स्पेशल नाम नहीं है। रेडियो डायरेक्शन ऑफ रेंजिंग (Radio Direction of Ranging ) इन्हीं शब्दों में से r a d a r यह अक्षर लेके रडार यह शब्द बनाया गया है।
      अंधेरों में डूबे हुए ,कोहरे में छुपे हुए, पानी में डूबे हुए, खुली आंखों से नहीं दिखने वाले चीजों की खोज करनेके लिए रडार का उपयोग किया जाता है । रडार एक प्रकारका ऑब्जेक्ट डीटेक्शन सिस्टीम है जो रेंज, ऍगल या ऑब्जेक्ट का वेग निर्धारित करने के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करता है। इसका उपयोग विमान, जहाजों, अंतरिक्ष यान, निर्देशित मिसाइल, मोटर वाहन, मौसम निर्माण और इलाके का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। हवाई यात्रा में रडार को विशेष महत्व है। हवाई हवाई अड्डे से हवाई जहाज कितनी ऊंचाई पर है कितनी दूर है किस लोकेशन पर है किस लोकेशन पर है इसका पता लगाया जाता है ।जहां जॉब को मार्गदर्शन करने के लिए यह उपयुक्त साधन है.।  इसका आविष्कार रॉबर्ट वॉटसन वाट ने १९३० में स्कॉटलैंड में किया था। इन्हें यह पता चला कि रेडियो तरंगे किसी वस्तु से टकराकर वापस लौट आती है, इसी आधार पर रडार  आविष्कार हुआ। 

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       रडार कैसे काम करता है     

      रडारमे  में सुकश्म , कीटक जीव से भव्य परलोक पर्वत तक सबकी  की खोज करने की अतुल्य क्षमता होती है। हवामान, बिजलिया , बारिश, हवा , आंधी ,तूफान की जानकारी रडार की मदद से दी जा सकती है। शास्त्रज्ञ साइंटिस्टों को दूर के ग्रहों धूमकेतु उल्का और वातावरण की जानकारी रडार से मिलती है। युद्ध में शत्रु के द्वारा उपयोग में आने वाले औजार, आयुध ,क्षेपणास्त्र और उनके जहाजों की सूचना रडार देता है । अगर हम किसी पर्वत के पास खड़े रहकर जोर से आवाज लगाए तो उस आवाज की प्रतिध्वनि हमको सुनाई देती है। यह  प्रतिध्वनी कैसे तैयार होती है, या तो आप समझ ही सकते हैं । एक पर्वत पर से दी गई आवाज दूसरे पर्वत पर टकरा कर अपने तक वापस आती है, और 4 या 6 बार तक  उसकी प्रतिध्वनि आती रहती है । यही रडार का रहस्य है । रडार भी इसी तरह से काम करता है ।

            रडार में एंटीना लगा होता है से जो रेडियो तरंगों को छोटे-छोटे टुकड़ों में छोड़ता रहता है। रडार में लगे हुए ट्रांसमीटर से रेडियो तरंगे आकाश में प्रक्षेपित की जाती है।  यह लहरें किसी ऑब्जेक्ट पर  गिर के फिर से रडार की रडार के एरियल  की तरफ आती है । वहां से उन तरंगों को अपने मूल यंत्र की तरफ ले जाया जाता है ।  रडार में एंटेना डिप्लेक्सेर , ट्रांसमीटर , फेज लोक लूप (PLL),रिसीवर और प्रोसेसिंग यूनिट फिट किया हुवा होता है।  इसमें जो ट्रांसमीटर लगा हुवा होता है उससे लगातार हर सेकंड रेडियो  वेव्स निकलती रहती हैं और यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन यानी छोटे-छोटे कंपन के रूप में होती हैं. इसलिए इनकी तरंगे की  लाइट के स्पीड बराबर होती है। विद्युत संदेश के रूप में यह संदेश प्राप्त होता है । तरंगों को निकलने के बाद वापस आने तक जितना वक्त लगता है उससे वह ऑब्जेक्ट कितना दूर है इसका पता लगाया जाता है । इस रेडियो तरंग से रडार हर चीज का लोकेशन बता सकता है ।

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 रडार अलग अलग प्रकार के होते हैं।

   रडार के जरुरत व् कार्य के अनुसार विभिन्न प्रकार होते हैं। कुछ स्थिति व् स्थल का पता लगनेवाले होते है तो कुछ सन्देश भेजने वाले होते है। कुछ रडार स्टील होते हैं। कुछ रडार ३६० डिग्री घूमने वाले होते हैं । कुछ रडार किसी भी एंगल में घूमकर 500 किलोमीटर तक के विमानों की खोज लगा सकते हैं । सेकंड के१/१५००  में हिस्से में ३५० किलोमीटर तक के हवाई जहाज तक रेडियो तरंगे ले जाई जा सकती है और संदेश ला  सकती है । अभी बड़े-बड़े हवाई जहाजों में रडार सिस्टम बीठाई जाती है । उसकी वजह से पायलट को आसमान में उड़ रहे और विमान और विमान पर आने वाले तूफान की जानकारी मिलती रहती है । पानी में चलने वाले जहाजों पर भी रडार बीटाए जाते हैं । ईसवी सन 1935 में रॉबर्ट वटसन इस शास्त्रज्ञ को ब्रिटिश सरकार ने राडार बनानेके लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने शत्रु के विमानों की खोज करने वाली रडार यंत्रणा तैयार की । अब जैसे बड़े राडार रहते हैं  वैसे छोटे रडार भी आ चुके हैं । अंध व्यक्ति और मोटर चालक इनके लिए और पुलिस के लिए गतिमान वाहनों की खोज करने के लिए , अन्य बहुत से कामों के लिए रडार उपयोग में लाया जाता है ।

भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक में राडार का इस्तेमाल 

        हाल ही में  भारत के पुलवामा में हुवे आतंकी हमले का बदला लेते हुए भारतीय लश्कर ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बड़ी कार्यवाही की है।  भारतीय वायुसेना के  12 मिराज विमानों ने पाकिस्तान के अधिकृत कश्मीर में घुसकर आतंकवादी कैंपों पर 1000 किलो के बम गिराए।  इस जवाबी कार्रवाई में कई आतंकवादी ठिकानों को नष्ट कर दिया गया। पाकिस्तानअधिकृत कश्मीर के  आतंकवादी कैंपो में लगभग 40 से 50 आतंकवादी ट्रेनिंग ले रहे थे।  इस ओपरेशन मैं कई सारे आतंकवादी को ठिकानों को निशाना बनाया गया परंतु हैरानी की बात तो यह है कि पाकिस्तान के रडार भारतीय सेना के विमानों को नहीं पकड़ पाए।

 भारतीय वायु सेना के मिराज विमानों की एक खासियत है। इसमें ऐसी टेक्नोलॉजी लगी हुई है जिससे यह विमान रडार के संपर्क में आते ही एक तरह की फ्रीक्वेंसी को उत्सर्जित करते हैं , जिससे रडार में पकड़ नहीं पाता।  विमान की लोकेशन रडार की स्क्रीन पर दिखाई नहीं देती।  इसी वजह से भारत पाकिस्तान में हमला करने में कामयाब रहा है।  पाकिस्तान के राडार है पकड़ने में असफल रहे और भारतीय सेना ने इस बड़ी घटना को अंजाम दिया। जिसमें करीब करीब 200 से 300 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया।   भारतीय सेना ने इन मिराज विमानों को रसिया से खरीदा है।  तथा हाल ही में राशियावालों से इसे अपग्रेड किया गया था। 

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सोनार / सुनार क्या है ?

 सोनार का आविष्कार चमगादर पर की गई एक्सपेरिमेंट के आधार पर किया गया था।  चमगादड़ की आंखें नहीं होती फ़िरभी वह सभी तरफ बहुत अच्छी तरह से हवा में उड़ते हैं।  जब उनके ऊपर एक्सपेरिमेंट किया गया तो पता चला कि जब उड़ते हैं तो ध्वनि तरंगें को छोड़ते हैं और जब रास्ते में कोई वस्तु आती है उससे टकराकर वापस लौट आती है। जिससे इन्हें रास्ते में आने वाले और खतरों का पता चलता है।  ऐसा सिस्टम है जिसके अंदर से निकलती रहती है और जब किसी वस्तु से टकराकर वापस आ जाती है, जिससे उसकी स्थिति का पता चलता है।  किसी वस्तु की स्थिति का पता लगाना हेतू , तरंगे उस वस्तु से टकराकर वापस आ जाती है फिर किसका रिसीवर इनके उसको रिसीव करके प्रोसेसर को भेज देता है और फिर प्रोसेसर इन ए प्रोसेस करके डिस्प्ले पर दिखा देता है।  जिससे उस वस्तु की स्थिति का पता चलता है।  रडार में और सोनार में क्या अंतर है वैसे देखा जाए तो दोनों में कोई अंतर नहीं है क्योंकि दोनों का काम ही है। वह  किस वस्तुस्थिति में काम करता है ,वही अंतर  है।  किसी वस्तु की स्थिति का पता लगाना है  रेडियो तरंग से उस वस्तु की स्थिति का पता चलता है।  फिर भी इन दोनों में कुछ अंतर है जैसे जहां रडार रेडियो वेव्स टेक्नोलॉजी पर काम करता है वही सुनार संदेश टेक्नोलॉजी पर काम करता है।  जमीन या हवा में किसी वस्तु की स्थिति जानने में किया जाता है।   सोनार का यूज पानीवाली जगहों में किसी वस्तु की स्थिति जानने में किया जाता है।  बड़े-बड़े युद्धपोत, जहाजोमे,  सबमरीन पनडुब्बियों में  सुनार का यूज किया जाता है।  उम्मीद है आप रडार और सुनार के बारे में अच्छी तरह से समझ गए हो।


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