डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जीवनी
बचपन में अछूतों पर होने वाले अत्याचार और अपमान उन्हें झेलने पड़े। कक्षा के विद्यार्थी उनसे दुरी बनके रखते थे। बातें नहीं करते थे। पर इन विपरीत परिस्थितियों का एक फायदा उनको हुआ; कि उनकी किताबों के साथ दोस्ती हो गई। और आगे वह गहरी होती चली गई। स्कूल में उनको एक प्यार करने वाला ,एक इंसान मिला वे थे अंबेडकर गुरुजी उन्होने ही बालभीम का उपनाम बदलकर आंबेडकर कर दिया।
आधुनिक भारत की पावन भूमि में जन्मे हुए महापुरुषों में डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का नाम ऊंचे स्थान पर है। भारत के प्रमुख विधि वेत्ता, समाजसुधारक थे । हमारे देश के लिए एवं समाज के लिए रात-दिन कार्य करके भारतीय समाज के प्रति उनकी संवेदना और कर्तव्यनिष्ठा अतुलनीय है। हमारे देशवासियों के लिए वे एक आदर्श है। भारतरत्न डॉक्टर बाबासाहेब रामजी आंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के महू गांव में हुआ। इनके पिता जी का नाम रामजी माता जी का नाम भीमाबाई था। रामजी फौज में सूबेदार थे। फौज की नौकरी छोड़ने के बाद रामजी दापोली में आ गए, उसके बाद महाराष्ट्र के सातारा जिले में बस गए। बाल भीम की के पिताजी एक फौजी मिजाज के साधु पुरुष थे। वे कबीरपंथी थे। संत कबीर के दोहे सुनाते थे। अपने बच्चों पर अच्छे संस्कार हो इसीलिए प्रयत्नशील थे। उनमें पढ़ने की लालसा थी। सौ घर में अच्छी ग्रंथ संपदाए मौजूद थी। वे बच्चों का नई नई किताबें लाकर देते थे। घर के इस अभ्यास पूर्ण वातावरण का परिणाम बाल भिमराव पर हुआ।
बचपन में अछूतों पर होने वाले अत्याचार और अपमान उन्हें झेलने पड़े। कक्षा के विद्यार्थी उनसे दुरी बनके रखते थे। बातें नहीं करते थे। पर इन विपरीत परिस्थितियों का एक फायदा उनको हुआ; कि उनकी किताबों के साथ दोस्ती हो गई। और आगे वह गहरी होती चली गई। स्कूल में उनको एक प्यार करने वाला ,एक इंसान मिला वे थे अंबेडकर गुरुजी उन्होने ही बालभीम का उपनाम बदलकर आंबेडकर कर दिया।
बाबासाहब का विद्यार्जन प्रदीर्घ है। उनकी प्राथमिक शिक्षा दापोली और सातारा यहां हुई। माध्यमिक शिक्षा मुंबई से हुई। मुंबई के एलफिंस्टन एलफिस्टन कॉलेज में बी .ए पास होने के बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्जी की। इसलिए उनको बड़ौदा के महाराज ने आर्थिक मदद की। M.A. Ph. D (कोलंबिया), D .Sc (लंदन), LLD ( कोलंबिया ), डि.लीट (उस्मानिया), BAR at Law (लंदन )
डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने 1913 से 1917 तक अमेरिका और इंग्लण्ड में रहकर अर्थशास्त्र, राजनीति तथा कानून की शिक्षा ली। Ph .D की डिग्री प्राप्त की । इतना अध्ययन करके डिग्रियां हासिल करके उन्होंने बडोदा संस्थान में मिलिट्री सेक्रेटरी औदेपर पर काम किया। क्योकि बड़ोदा के राजा की छात्रवृत्ति की शर्त के अनुसार उनकी 10 वर्ष सेवा करनी थी । उन्हें सैनिक सचिव का पद दिया गया था । सैनिक सचिव के पद पर होते हुए भी उन्हें काफी अपमानजनक घटनाओं का सामना करना पड़ा । अछूत होने के कारण उन्हें होटल में नहीं आने दिया । वे जहा घर किराएसे लेकर रहते थे वह से भी उन्हें निकला गया। सैनिक कार्यालय के चपरासी व् अफसर उन्हें रजिस्टर फाइलें फेंकके देते थे । कार्यालय का पानी भी उन्हें पीने नहीं दिया जाता था । जिस कालीन पे वे चलते थे, अशुद्ध होने के कारण उस पर कोई और नहीं चलता था । अपमानित होने पर उन्होंने यह पद का इस्तीफा दे दिया ।
वे मुंबई आ गये। वह भी जातीभेद प्रथा का सा सामना उन्हें करांना पड़ा। यहां रहकर उन्होंने वार एट लॉं’ की उपाधि ग्रहण की । मुंबई में अर्थशास्त्र कायदा विषय के प्रोफेसर के तौर पर काम किया। कुछ दिन उन्होंने वकीली भी की थी। वकील होने पर भी उन्हें कोई कुर्सी नहीं देता था । वे कत्ल का मुकदमा जीते थे । उनकी कुशाग्र बुद्धि की प्रशंसा मन मारकर सबको करनी ही पड़ी ।
उसके बाद कि उनकी सारी जीवनी समाजकारण और राजकारण में लगा दी।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर एक अष्टपैलू व्यक्तिमत्व थे उनको हर क्षेत्र का परिपूर्ण ज्ञान था। शिक्षा समाज अर्थकारण ,राजकीय, धार्मिक ,पत्रकारिता, कायदा ऐसी विभिन्न क्षेत्रों में उन्होंने अपने कुशाग्र बुद्धि और कुशल नेतृत्व से बदलाव लाए। पुराने मुंबई राज्य में विधिमंडल सदस्य, भारतीय संसद सदस्य, घटना समिति अध्यक्ष , कायदा मंत्री ऐसे उचे पद उन्होंने विभूषित किए।
डॉ बाबासाहेब ने समाज के पिछड़े लोगों को , दिन, दलित , श्रमिक, मजदूर विस्थापितो , शोषितों के अंधकारमय जीवन अंधकार में जीवन को उजाले का संदेश दिया उनके दिलों में सामाजिक क्रांति की ज्वाला लगाके उनको अपने अधिकारों के प्रति आगाह किया। शिक्षा से ही दलितों का विकास होगा, यह उनका विश्वास था। शिक्षा से ही समाज परिवर्तन हो सकता है , शिक्षा लेने से ही समाज को उनके अधिकार व कर्तव्यों का एहसास होगा।
" शिक्षा शेरनी का दूध है!!! जो इसे पियेगा वह, गुर्राए बिना नहीं रहेगा। " ऐसा वे बिरादरी के लोगों को समझाते थे। ''सीखो ,संगठन करो'' ऐसा संदेश उन्होंने दिया।
डॉक्टर अंबेडकर एक प्रसिद्ध भारतीय विधिवेत्ता थे।उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरोध एवं संघर्ष करने में बिता दी। उन्होंने उच्चवर्गीय मानसिकता को चुनौती दी। निचले निम्न वर्गों के लोगों के लिए महान कार्य किया। अपने अध्ययन, परिश्रम के बल पर उन्होंने अछूतों को नया जीवन व सम्मान दिया । बचपन से छुआअछूत और सामाजिक भेदभाव का घोर अपमान सहते हुए उन्होंने वकालत की। सार्वजनिक कुओ से पानी पीने और मंदिरों में प्रवेश करने के लिए दलितोंको प्रेरणा दी। 1926 को कानूनी तरीके से तालाब सबके लिए खुला कर दिया। पर वहा पर इस कायदे पर ठीक से अमल नहीं हुआ। इसीलिए उन्होंने 20 मार्च 1927 को महाड का चवदार तालाब का पानी पीकर सत्याग्रह किया।
अछूतों को उबारने के लीये , और उनको शीक्षा व राजकीय क्षेत्रों में लाने के लिए उन्होंने अनेक कानून बनाए। सामाजिक विषमता और दलितों के लिए ऐसी गैर परिस्थितियों को के लिए जिम्मेदार मनुस्मृति इस धर्म ग्रंथ का उन्होंने दहन किया। दलितों को चुनाव का अधिकार। कायदा मंडल में प्रतिनिधित्व। सरकार में योगदान आदि अधिकार दलितों को मिलना जरूरी है। वह पुना करार (पुणे एक्ट) से पूर्ण हुआ।
सन 1936 में अंबेडकर ने मजदूर व किसानों की समस्या का निराकरण करने के लिए स्वतंत्र स्वतंत्र मजदूर पक्ष की स्थापना की। अपने विचारों के प्रसार हेतु मूकनायक, बहिष्कृत भारत , जनता, अखबार शुरू किए।
सामाजिक व राजकीय कार्य हेतु शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना की। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु के कैबिनेट में पहली बार अंबेडकर जी को एडमिनिस्ट्रेटर बनाया गया। द अनटचेबल्स हू आर दे?, व्हू वेयर दी शूद्राज, बुद्धा एण्ड हीज धम्मा, पाकिस्तान एण्ड पार्टिशन ऑफ इण्डिया, द राइज एण्ड फॉल ऑफ हिन्दू वूमन ऐसी ग्रंथो व् किताबो का लेखन किया। 300 से भी अधिक लेख भी लिखे । स्वतन्त्र भारत का संविधान भी उन्होंने ही लिखा ।
क्या दुनिया में ऐसा कोई समाज है ;जहां मनुष्य के छूने मात्र से उसकी, परछाई से लोग अपवित्र हो जाते हैं ?? यह सवाल वे पूछते थे। हिंदू धर्म पुराण धार्मिक ग्रंथों के बारे में उनके मन में कोई श्रद्धा नहीं रही थी। समाज में उनके साथ किए जाने वाले भेदभाव की बात उन्होंने लंदन के गोलमेज राउंड टेबल कांफ्रेंस में भी रखी थी। मैं दुर्भाग्य से हिंदू अछूत होकर जन्मा हूं किंतु मैं हिंदू होकर नहीं मरूंगा , ऐसा उन्होंने कहा था। भारतीय समाज में मिलती रही विषमता और अन्यायपूर्ण बर्ताव के कारण उन्होंने हिंदू धर्म का त्याग करने का निश्चय किया। 14 अक्टूबर 1956 को मध्यभारत में स्थित नागपुर की दीक्षाभूमि मैदान में अपने दो लाख अनुयाईयो के साथ बौद्ध धर्म का स्वीकार किया।
1940 में बाबा साहब को डायबिटीज हुआ था। अक्टूबर 1954 को वह बहुत बीमार हो गए। दृष्टि कमजोर हुई। अपनी अंतिम ग्रंथ बुद्धा और उनका धम्म को पूर्ण करने के 3 दिन बाद , 6 दिसंबर 1956 को उनका देहांत हो गया। 7 दिसंबर को उनका बौद्ध पद्धती से अंतिम संस्कार हुआ।
सामाजिक भेदभाव, जातिभेद व विषमता का सामना करते ऱहे। अन्त तक वे झुके नहीं । अपने अध्ययन, परिश्रम के बल पर उन्होंने अछूतों को नया जीवन व सम्मान दिया । उन्हें भारत का आधुनिक मनु भी कहां जाता है । उनके इस अतुलनीय कार्य के लिए लिए आंबेडकर जी को 1990 में देश का सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न दिया गया।
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