अंधश्रद्धा कर्मकांड भोग लालसा इसकी वजह से लोगों को इसकी वजह से लोग
सही धर्म भूल गए थे। पोथी पुरान निष्ठा, यांत्रिक आचरण इसकी वजह से
सही जीवनमूल्यों का उन्हें विस्मरण हो गया था। इस वक्त यीशु ख्रीस्त ने "
ईश्वर यह परम सत्य है" और उसका विशुद्ध ज्ञान यह पाप मुक्ति का वह शाश्वत जीवन का मार्ग है यह दिखा दिया था। संयम त्याग सेवा
क्षमा प्रेम समर्पण भक्ति श्रेष्ठ जीवन मूल्यों का उन्होंने विचारों से और
अपने विशुद्ध आचरण से उपदेश किया।
येशू खुद को परमेश्वर का पुत्र मानते थे। भक्ति, सेवा, त्याग यह उनके जीवन की त्रिसुत्री थी। ईश्वर शक्ति पर उनकी नितांत श्रद्धा थी भगवान येशू मतलब प्रेम का अथांग सागर। मनुष्य की सेवा का और त्याग का मूर्तिमंत स्वरूप। हमको रोज की रोटी दे हमको, किसी भी प्रकार के मोह में मत गिरने दो, अमंगल अशुभ से हमें बचाओ। यही उनकी ईश्वर को यही उनका ईश्वर को मांगना था। येशू के सिखाये तत्व ही क्रिश्चियन धर्म का सार है। त्यागमय सेवा करने वाले यीशु का उपदेश ही आत्मज्ञान का सबूत है। जो कोई मां बाप बहन भाई ईश्वर से मुझसे अधिक प्रेम करता है। वह मेरा कहलाने के योग्य नहीं। स्वामित्व की मालिकाना हक की भावना, यह अहंकार का प्रभाव यीशु ने अपने अच्छे आचरण से यीशु ने नष्ट किया। पाप से घृणा करो पापी से नहीं यहां यीशु की महान सिख है।
श्रद्धा यहां यीशु का गुण था। मानव की सेवा यह उनका कर्म था। वे दिन दलितों के वे दाता थे। उद्धारक थे। अंधश्रद्धा मतलब भक्ति नहीं; जैसा जिसका कर्म होगा वैसा ही उसे फल मिलता है। यह कर्मयोग का सिद्धांत वे बताते हैं। उनका बोलना और उनकी कृति एक ही थी। वह जो बोलते थे वही करते थे। उनकी ईश्वर पर नितांत श्रद्धा थी। इस श्रद्धा की वजह से ही उनका सूली पर का बलिदान अमर हो गया। पापी, भोंदू, विश्वासघाती, लोभी, ढोंगी, अत्याचारी, अहंकारी, दुर्जन लोगों की उन्हें अच्छी तरह परख थी। मनुष्य के मन की चंचलता, स्वभाव, विचार और शुद्धता का उनको पता था। उसके साथ-साथ सद्गुणी आचरण का निष्कलंक चरित्र का के वे चाहने वाले थे।
एक भेडपालने वाले की झोपड़ी में उनका जन्म हुआ। मां बाप बहन भाई इन रिश्तो को भुलाकर पड़ोसियों से प्रेम करो ऐसा वह बोलते थे। उनकी शिक्षा से डरे हुए, और उनकी शिक्षा का द्वेष घृीणा करने वाले लोगों ने उन्हें सूली पर चढ़ाया। हाथ पैरों में कील ठोकी, सीने में लोहे की कील घुसा दी। अपार वेदना तकलीफ सहन करते हुए, उन्होंने मृत्यु को गले लगाया शरीर चैतन्य हीन हुआ। गर्दन झुक गईं। तभी भी वह अथांग प्रेम का सागर ईश्वर की प्रार्थना करता है। ईश्वर से प्रार्थना करता है। याचना करता है। '' हे ईश्वर यह क्या कर रहे हैं, यह इन्हें नहीं समझ पा रहा। कृपया इन्हें क्षमा कर दो।''
आज भी चर्च में सामुदायिक प्रार्थना में यही सीख दी जाती है। हे परमेश्वर उन्हें क्षमा कर। ईश्वर दयावान है। वह सबको क्षमा करता है।
चर्च यह आध्यात्मिक संस्था यीशु ख्रीस्त के बाद में उनके महान शिष्यों के प्रयत्न से अस्तित्व में आई। इन महान शिष्यों ने यीशु ख्रीस्त का तेजस्वी संदेश दृढ़ता पूर्वक चलाएं रखा। उसका सर्वत्र प्रसार किया। इसवी सन चौथे शतक में रोमन सम्राट कांस्टेंटाइन इन्होंने क्रिश्चियन धर्म स्वीकारने के बाद इस धर्म को राजाश्रय मिला। यह राजधर्म हो गया। उसके पश्चात यूरोप आशियां में उसका तेजी से फैलाव हो गया। से रोमन कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट इत्यादि धर्म पंथ निर्माण हुए।
किए हुए पापों के प्रति दुख व्यक्त करना। उन पापों की इन पापों को कबूल (कन्फेशन) करनेसे मानसिक बदलाव होता है। (कन्वर्शन) इसे क्रिश्चियन धर्मों में बहुत बड़ा महत्व है। ईश्वर निष्ठा ईश्वर श्रद्धा प्रेषित के प्रति अनन्य भक्ति भाव से क्रिश्चियन धर्म में बड़ा महत्व दिया गया है अहंकार सुनना अनन्य शरण ईश्वर भक्ति क्रिस्टी धर्म के प्रमुख अंग है। भक्ति भावना बढ़ने के लिए सामुदायिक प्रार्थना को बढ़ावा दिया गया है। प्रार्थना व नैतिक सदाचार इसी प्रकार से क्रिश्चियन धर्म आचरण में धार्मिक मान्यताओं के विषय मानव के प्रति पूजता दान धर्मा उपवास व्रत उत्सव समारंभ इसकी वजह से धर्म श्रद्धा पक्की होने में मदद हुई है यीशु ख्रीस्त का जीवन व कार्य मतलब देवी प्रेमा मेहता का महान अविष्कार दिखता है। यीशु ख्रीस्त ने किसी भी व्यक्ति में कोई भी भेद नहीं किया। गरीब -अमीर ,काला-गोरा, साक्षर-निरक्षर सब एक है। ईश्वर का राज्य हर किसी की अंतरात्मा में होता है।
ईश्वर एक ही है परंतु वहां पिता पुत्र और पवित्र आत्मा इन तीन स्वरूपों में अपने हमें दिखता है।
2 पाप मुक्ति
मनुष्य अपने अंहकारी व लोभी स्वभाव की वजह से पाप करता है । परंतु अगर उसे अपने कृत्य का पछतावा हुआ और उसने यीशु के आगे शरण लेकर उसकी प्रार्थना की तो वह पाप मुक्त होता है।
३) पश्चाताप की व पापोंको कबूल करना /पछतावा करना
अपने हाथ से घटे हुए पाप परमेश्वर के सामने कबूल करकर उसके प्रति पश्चाताप व्यक्त करने से मन का परिवर्तन होता है। व्यक्ति के वर्तन में सुधारणा होती है और ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर क्षमा करता है।
४) पूर्वनियति
परमेश्वर कृपा से हर एक मनुष्य को जन्म लेटेही प्राप्त पात्रता मतलब पूर्व नियति ऐसा माना जाता है।
यह तीन तत्व है
१) परमपिता मतलब परमेश्वर हुआ परमात्मा
२) परमेश्वर पुत्र यीशु ख्रीस्त
३) पवित्र आत्मा
परमेश्वर अनादि, अनंत, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, अस्वरूप, सर्वव्यापी है। वह परम पवित्र है। परमन्यायी है। करुणा, प्रेम, क्षमा इनका सर्वोच्च अविष्कार मतलब परमेश्वर। सारा विश्व परमेश्वर की निर्मिती है। वह सब का रक्षक कृपा में ऐसा विश्वपिता है। यह सारी सृष्टि यहां ईश्वरी नियमोंसे चलती है। यीशु यह ईश्वर के चहेते वह इकलौते पुत्र है। वह ईश्वर ने मनुष्य के उत्थान के लिए भेजे हुए प्रेषित है। मानव और परमेश्वर इनमें का अध्यात्मिक दुआ मतलब यीशु ख्रीस्त है। मनुष्य रूप लेकर वह मनुष्य के साथ रहकर, उन्होंने मनुष्य को कल्याण का उपदेश किया। पापमुक्ती का और मोक्षप्राप्ति का महान मार्ग उन्होंने दिखलाया। अनंत कष्ट सहन करके आखिर में मानवता के लिए उन्होंने दिव्य बलिदान किया।
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येशू खुद को परमेश्वर का पुत्र मानते थे। भक्ति, सेवा, त्याग यह उनके जीवन की त्रिसुत्री थी। ईश्वर शक्ति पर उनकी नितांत श्रद्धा थी भगवान येशू मतलब प्रेम का अथांग सागर। मनुष्य की सेवा का और त्याग का मूर्तिमंत स्वरूप। हमको रोज की रोटी दे हमको, किसी भी प्रकार के मोह में मत गिरने दो, अमंगल अशुभ से हमें बचाओ। यही उनकी ईश्वर को यही उनका ईश्वर को मांगना था। येशू के सिखाये तत्व ही क्रिश्चियन धर्म का सार है। त्यागमय सेवा करने वाले यीशु का उपदेश ही आत्मज्ञान का सबूत है। जो कोई मां बाप बहन भाई ईश्वर से मुझसे अधिक प्रेम करता है। वह मेरा कहलाने के योग्य नहीं। स्वामित्व की मालिकाना हक की भावना, यह अहंकार का प्रभाव यीशु ने अपने अच्छे आचरण से यीशु ने नष्ट किया। पाप से घृणा करो पापी से नहीं यहां यीशु की महान सिख है।
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श्रद्धा यहां यीशु का गुण था। मानव की सेवा यह उनका कर्म था। वे दिन दलितों के वे दाता थे। उद्धारक थे। अंधश्रद्धा मतलब भक्ति नहीं; जैसा जिसका कर्म होगा वैसा ही उसे फल मिलता है। यह कर्मयोग का सिद्धांत वे बताते हैं। उनका बोलना और उनकी कृति एक ही थी। वह जो बोलते थे वही करते थे। उनकी ईश्वर पर नितांत श्रद्धा थी। इस श्रद्धा की वजह से ही उनका सूली पर का बलिदान अमर हो गया। पापी, भोंदू, विश्वासघाती, लोभी, ढोंगी, अत्याचारी, अहंकारी, दुर्जन लोगों की उन्हें अच्छी तरह परख थी। मनुष्य के मन की चंचलता, स्वभाव, विचार और शुद्धता का उनको पता था। उसके साथ-साथ सद्गुणी आचरण का निष्कलंक चरित्र का के वे चाहने वाले थे।
एक भेडपालने वाले की झोपड़ी में उनका जन्म हुआ। मां बाप बहन भाई इन रिश्तो को भुलाकर पड़ोसियों से प्रेम करो ऐसा वह बोलते थे। उनकी शिक्षा से डरे हुए, और उनकी शिक्षा का द्वेष घृीणा करने वाले लोगों ने उन्हें सूली पर चढ़ाया। हाथ पैरों में कील ठोकी, सीने में लोहे की कील घुसा दी। अपार वेदना तकलीफ सहन करते हुए, उन्होंने मृत्यु को गले लगाया शरीर चैतन्य हीन हुआ। गर्दन झुक गईं। तभी भी वह अथांग प्रेम का सागर ईश्वर की प्रार्थना करता है। ईश्वर से प्रार्थना करता है। याचना करता है। '' हे ईश्वर यह क्या कर रहे हैं, यह इन्हें नहीं समझ पा रहा। कृपया इन्हें क्षमा कर दो।''
आज भी चर्च में सामुदायिक प्रार्थना में यही सीख दी जाती है। हे परमेश्वर उन्हें क्षमा कर। ईश्वर दयावान है। वह सबको क्षमा करता है।
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ख्रिस्ती / क्रिश्चियन धर्म के बारेमे (Christianity)
विश्व का कल्याण यह क्रिश्चियन धर्म का मूल है। पाप, पश्चाताप, क्षमा, प्रभुकृपा चित्तशुद्धि, पापमुक्ति इसके द्वारा ईश्वरी प्रेम और आनंद इसका अनुभव लेना; वह पूरा जीवन ईश्वर भक्ति व ईश्वर सेवा के लिए समर्पित करना यह क्रिश्चियन धर्म बताता है। पवित्र शास्त्र पर केवल श्रद्धा रखना पर्याप्त नहीं है ; तो पवित्र शास्त्र के प्रत्येक श्रेष्ठ मूल्यों को प्रत्यक्ष आचरण में लाकर उसका परिपालन करना इसे क्रिश्चियन धर्म ने महत्व दिया है। प्रेम व सेवा इसके ऊपर आधारित कुछ क्रिश्चियन धर्म ने मानव धर्मसंस्कृति के विकास में बहुमोल मदद की है।चर्च यह आध्यात्मिक संस्था यीशु ख्रीस्त के बाद में उनके महान शिष्यों के प्रयत्न से अस्तित्व में आई। इन महान शिष्यों ने यीशु ख्रीस्त का तेजस्वी संदेश दृढ़ता पूर्वक चलाएं रखा। उसका सर्वत्र प्रसार किया। इसवी सन चौथे शतक में रोमन सम्राट कांस्टेंटाइन इन्होंने क्रिश्चियन धर्म स्वीकारने के बाद इस धर्म को राजाश्रय मिला। यह राजधर्म हो गया। उसके पश्चात यूरोप आशियां में उसका तेजी से फैलाव हो गया। से रोमन कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट इत्यादि धर्म पंथ निर्माण हुए।
प्रमुख धर्म कल्पना :-
ईश्वर की याद ना ईश्वर का आदेश न मानने से मनुष्य पापी हो जाता है। हर कोई जन्म से ही पापी होता है, पर दीक्षा / प्रसाद लेने से वह पुण्यका अधिकारी बनता है। मानव जातिके तारणहार बनने वाले यीशु ख्रीस्तको शरण जाना और उसकी कृपा संपादन करना यह पाप मुक्ति का श्रेष्ठ मार्ग है।किए हुए पापों के प्रति दुख व्यक्त करना। उन पापों की इन पापों को कबूल (कन्फेशन) करनेसे मानसिक बदलाव होता है। (कन्वर्शन) इसे क्रिश्चियन धर्मों में बहुत बड़ा महत्व है। ईश्वर निष्ठा ईश्वर श्रद्धा प्रेषित के प्रति अनन्य भक्ति भाव से क्रिश्चियन धर्म में बड़ा महत्व दिया गया है अहंकार सुनना अनन्य शरण ईश्वर भक्ति क्रिस्टी धर्म के प्रमुख अंग है। भक्ति भावना बढ़ने के लिए सामुदायिक प्रार्थना को बढ़ावा दिया गया है। प्रार्थना व नैतिक सदाचार इसी प्रकार से क्रिश्चियन धर्म आचरण में धार्मिक मान्यताओं के विषय मानव के प्रति पूजता दान धर्मा उपवास व्रत उत्सव समारंभ इसकी वजह से धर्म श्रद्धा पक्की होने में मदद हुई है यीशु ख्रीस्त का जीवन व कार्य मतलब देवी प्रेमा मेहता का महान अविष्कार दिखता है। यीशु ख्रीस्त ने किसी भी व्यक्ति में कोई भी भेद नहीं किया। गरीब -अमीर ,काला-गोरा, साक्षर-निरक्षर सब एक है। ईश्वर का राज्य हर किसी की अंतरात्मा में होता है।
क्रिस्टी धर्म के मूल तत्व
1) ईश्वर सिद्धांतईश्वर एक ही है परंतु वहां पिता पुत्र और पवित्र आत्मा इन तीन स्वरूपों में अपने हमें दिखता है।
2 पाप मुक्ति
मनुष्य अपने अंहकारी व लोभी स्वभाव की वजह से पाप करता है । परंतु अगर उसे अपने कृत्य का पछतावा हुआ और उसने यीशु के आगे शरण लेकर उसकी प्रार्थना की तो वह पाप मुक्त होता है।
३) पश्चाताप की व पापोंको कबूल करना /पछतावा करना
अपने हाथ से घटे हुए पाप परमेश्वर के सामने कबूल करकर उसके प्रति पश्चाताप व्यक्त करने से मन का परिवर्तन होता है। व्यक्ति के वर्तन में सुधारणा होती है और ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर क्षमा करता है।
४) पूर्वनियति
परमेश्वर कृपा से हर एक मनुष्य को जन्म लेटेही प्राप्त पात्रता मतलब पूर्व नियति ऐसा माना जाता है।
त्रिक सिद्धांत
ख्रिस्ती धर्म के अनुसार ईश्वर के तीन रूप है उन तीनों से मिलकर परम सत्य तैयार होता है।यह तीन तत्व है
१) परमपिता मतलब परमेश्वर हुआ परमात्मा
२) परमेश्वर पुत्र यीशु ख्रीस्त
३) पवित्र आत्मा
परमेश्वर अनादि, अनंत, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, अस्वरूप, सर्वव्यापी है। वह परम पवित्र है। परमन्यायी है। करुणा, प्रेम, क्षमा इनका सर्वोच्च अविष्कार मतलब परमेश्वर। सारा विश्व परमेश्वर की निर्मिती है। वह सब का रक्षक कृपा में ऐसा विश्वपिता है। यह सारी सृष्टि यहां ईश्वरी नियमोंसे चलती है। यीशु यह ईश्वर के चहेते वह इकलौते पुत्र है। वह ईश्वर ने मनुष्य के उत्थान के लिए भेजे हुए प्रेषित है। मानव और परमेश्वर इनमें का अध्यात्मिक दुआ मतलब यीशु ख्रीस्त है। मनुष्य रूप लेकर वह मनुष्य के साथ रहकर, उन्होंने मनुष्य को कल्याण का उपदेश किया। पापमुक्ती का और मोक्षप्राप्ति का महान मार्ग उन्होंने दिखलाया। अनंत कष्ट सहन करके आखिर में मानवता के लिए उन्होंने दिव्य बलिदान किया।
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पवित्र बाइबल धर्मग्रन्थ (Holy bible)
यीशु ख्रीस्त ने खुद कोई भी धर्म ग्रंथ नहीं लिखा। उनके जीवन में घटित प्रसंग यीशु ख्रीस्त के उपदेश , चार शुभवर्तमान में (गोस्पेल्स) ग्रंथ लिखे गए। यह क्रिश्चियन धर्म की पायाभूत धर्म संहिता है। उसे न्यू करार /नया करार/ न्यू टेस्टामेंट कहा जाता है। यीशु ख्रीस्त के शिष्यों का पत्र संग्रह ऐसी बाइबल के नए करार में ग्रंथों की पवित्र संहिता की रचना दिखती है। यीशु ख्रीस्त का दिव्यजीवन आत्मबलिदान सर्वकल्याण व् जीवन के शाश्वत मूल्यों का उपदेश है। उन्होंने तैयार किए हुए आध्यात्मिक महाकाव्य मतलब बाइबल को विश्व के साहित्य जगत में प्रतिष्ठा मिली है। क्रिस्टीधर्म प्रणित मोक्षमार्ग धर्मका सार मतलब बाइबल। क्रिश्चियन लोग बाइबल को ईश्वरका वचन धर्मश्रुति ग्रंथ उपाधि देकर बहूमान देते हैं।--------------------------------------- ------------------------------------ ------------------------------------
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