तरुण सागर जी का जन्म 26 जून 1967, ग्राम गुहजी, जिला दमोह, राज्य मध्य प्रदेश में हुवा ।
इनके माता श्रीमती का नाम शांतिबाई जैन और -पिता का नाम प्रताप चन्द्र जैन है। इन्होंने 8 मार्च 1981 में घर छोड़ दिया था। इनकी शिक्षा-दीक्षा छत्तीसगढ़ में हुई है। इनके प्रवचन की वजह से इन्हें 'क्रांतिकारी संत' का तमगा मिला हुवा है। इन्हें 6 फरवरी 2002 को मध्य प्रदेश शासन द्वारा राजकीय अतिथि का दर्जा मिला है ।
2 मार्च 2003 को गुजरात सरकार ने उन्हें 'राजकीय अतिथि' के सम्मान से नवाजा हुवा है । 'तरुण सागर' ने 'कड़वे प्रवचन' के नाम से एक किताब लिखी है। जिसके लिए वो काफी चर्चित रहे।
जैन मुनि तरुण सागर जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय के मुनि हैं. इस संप्रदाय
के मुनि दिगंबर संप्रदाय के मुनि हैं. तरुण सागर खुद इस परंपरा का कड़ाई से
पालन करते हैं और मानते हैं कि एक संत को यश अपयश का ध्यान न करके वही
कहना चाहिए जो समाज के लिए हितकारी है.
तरुण सागरजी का प्रधानमंत्री मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत से
करीबी रिश्ता है. दोनों इनके कार्यक्रम में शामिल होते रहे हैं। वे एक तरफ वो कड़वी बात कहने से परहेज नहीं करते हैं, दूसरी तरफ वो अपनी आलोचना करनेवालों के प्रति उदार रहते हैं.
जैन मुनि तरुण सागर जी के कड़वे विचार
दो चीजों को कभी मत भूलना। एक भगवान और दूसरी मौत। भगवान को याद करोगे तो
मृत्यु याद आए न आए कोई बात नहीं, लेकिन मृत्यु को याद करोगे तो भगवान जरूर
याद आएंगे।तुम्हारी वजह से अगर कोई इ्ंसान दुखी रहे तो समझ लो ये तुम्हारे लिए सबसे बड़ा पाप है, ऐसे काम करो कि लोग तुम्हारे जाने के बाद दुखी होकर आसूं बहाए तभी तुम्हें पुण्य मिलेगा।
गुलाब कांटों में भी हंसता है
गुलाब कांटों में भी हंसता है इसलिए लोग उसे प्रेम करते हैं, तुम भी ऐसे
काम करो कि तुमसे नफरत करने वाले लोग भी तुमसे प्रेम करने पर विवश हो
जायें।
घर में शांति चाहिए, तो दिमाग को ठंडा, जेब को गरम, जुबान को नरम, आंखों में शर्म, दिल में रहम रखो। आज के आदमी के दिमाग में आइस फैक्ट्री और मुख में शुगर फैक्ट्री हो तो जिंदगी के वारे-न्यारे हो जाएंगे।
घर में शांति चाहिए, तो दिमाग को ठंडा, जेब को गरम, जुबान को नरम, आंखों में शर्म, दिल में रहम रखो। आज के आदमी के दिमाग में आइस फैक्ट्री और मुख में शुगर फैक्ट्री हो तो जिंदगी के वारे-न्यारे हो जाएंगे।
हंसते मनुष्य हैं कुत्ते नहीं
हंसते मनुष्य हैं कुत्ते नहीं
हंसने का गुण केवल मानवों को मिला है इसलिए जब भी मौका मिले मुस्कुराइये,
कुत्ता चाहकर भी मुस्कुरा नहीं सकता।
आदमी को गृहस्थ धर्म के बाद वानप्रस्थ आश्रम को अपनाना चाहिए, क्योंकि वन बनने की प्रयोगशाला है। जो वन गया सो बन गया। जो भवन में अटक गया, वो लटक गया।
नेता व महिलाओं में एक समानता है प्रसव की। महिला के लिए नौ माह व नेताओं के लिए पांच साल का प्रसव वर्ष होता है। कोई गर्भवती महिला आठ माह अपने परिवार का ख्याल रखती है और नौवें महीने परिवार महिला का ख्याल रखता है।
नेता ठीक इसके विपरीत होते हैं। जनता चार साल तक नेताओं का ख्याल रखती है और नेता चुनाव आते समय एक साल जनता का ख्याल रखता है। महिला जिसे जनती है, उसे अपने गोद में बिठाती है। इसके विपरीत नेता कुर्सी में बैठकर बड़ा बनता है।
मुझे तुम्हारे जीवन के पांच खोट चाहिए। ऐसी बुरी आदत मुझे दे दीजिए, जिससे पत्नी को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। बच्चों को स्कूल में दूसरों के सामने नीचे देखना पड़ता है। आप पांच खोट मुझे दे देंगे, तो मेरा और आपका कथा में साथ बैठना सार्थक हो जाएगा।
मैं आपकी गलत धारणाओं पर बुलडोजर चलाऊंगा। आज का आदमी बच्चों को कम, गलत धारणाओं को ज्यादा पालता है। इसलिए वह खुश नहीं है। इसलिए मुझे आपके नोट नहीं, आपके खोट चाहिए।
इस मतलबी दुनिया को ध्यान से नहीं, धन से मतलब है। भजन से नहीं, भोजन से व सत्संग से नहीं, राग-रंग से मतलब है। सभी पूछते हैं कि घर, परिवार व व्यापार कितना है। कोई नहीं पूछता कि भगवान से कितना प्यार है।
जीवन में अपने संकल्प, साधना व लक्ष्य से कभी भी मत गिरो। गिरना ही है, तो प्रभु के चरणों में गिरो। जहां उठाने वाला हो, वहां गिरना चाहिए। जो स्वयं गिरे हुए हो, वहां गिरना अंधों की बस्ती में ऐनक बेचने के समान है। उठने के लिए गिरना आवश्यक है। उसी तरह सोने के लिए बिस्तर व पाने के लिए खोना जरूरी है।
दान को छपा-छपाके नहीं, बल्कि छिपा-छिपाके देना चाहिए। दान और स्नान गुप्त होना चाहिए, क्योंकि गुप्त दान पुण्य की वृद्धि और समृद्धि लाता है। दो चीजों को कभी मत भूलना।
आदमी को गृहस्थ धर्म के बाद वानप्रस्थ आश्रम को अपनाना चाहिए, क्योंकि वन बनने की प्रयोगशाला है। जो वन गया सो बन गया। जो भवन में अटक गया, वो लटक गया।
नेता व महिलाओं में एक समानता है प्रसव की। महिला के लिए नौ माह व नेताओं के लिए पांच साल का प्रसव वर्ष होता है। कोई गर्भवती महिला आठ माह अपने परिवार का ख्याल रखती है और नौवें महीने परिवार महिला का ख्याल रखता है।
नेता ठीक इसके विपरीत होते हैं। जनता चार साल तक नेताओं का ख्याल रखती है और नेता चुनाव आते समय एक साल जनता का ख्याल रखता है। महिला जिसे जनती है, उसे अपने गोद में बिठाती है। इसके विपरीत नेता कुर्सी में बैठकर बड़ा बनता है।
मुझे तुम्हारे जीवन के पांच खोट चाहिए। ऐसी बुरी आदत मुझे दे दीजिए, जिससे पत्नी को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। बच्चों को स्कूल में दूसरों के सामने नीचे देखना पड़ता है। आप पांच खोट मुझे दे देंगे, तो मेरा और आपका कथा में साथ बैठना सार्थक हो जाएगा।
मैं आपकी गलत धारणाओं पर बुलडोजर चलाऊंगा। आज का आदमी बच्चों को कम, गलत धारणाओं को ज्यादा पालता है। इसलिए वह खुश नहीं है। इसलिए मुझे आपके नोट नहीं, आपके खोट चाहिए।
इस मतलबी दुनिया को ध्यान से नहीं, धन से मतलब है। भजन से नहीं, भोजन से व सत्संग से नहीं, राग-रंग से मतलब है। सभी पूछते हैं कि घर, परिवार व व्यापार कितना है। कोई नहीं पूछता कि भगवान से कितना प्यार है।
जीवन में अपने संकल्प, साधना व लक्ष्य से कभी भी मत गिरो। गिरना ही है, तो प्रभु के चरणों में गिरो। जहां उठाने वाला हो, वहां गिरना चाहिए। जो स्वयं गिरे हुए हो, वहां गिरना अंधों की बस्ती में ऐनक बेचने के समान है। उठने के लिए गिरना आवश्यक है। उसी तरह सोने के लिए बिस्तर व पाने के लिए खोना जरूरी है।
दान को छपा-छपाके नहीं, बल्कि छिपा-छिपाके देना चाहिए। दान और स्नान गुप्त होना चाहिए, क्योंकि गुप्त दान पुण्य की वृद्धि और समृद्धि लाता है। दो चीजों को कभी मत भूलना।
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