सत्य अनुभवो पर लिखित ड़ॉ अजित देशमुख की अलौकिक किताब ।
धर्मोकी साधना समानता और विज्ञान
तीसरा भाग 3 /6
जब इन्सान मरता है उसके पूर्व उस वक्त वह जिस विचार-विकारों को जागरूक
करता है और लगातार उसके उपर ही सोचते रहता है जागृत न रहकर तो वह
मॉलिक्यूलर फिल्ड/ मनोवृत्ती जहां उसके प्राण जा रहे होते वहां जमा होते है
और जब वह गुजर जाता है तो वह मॉलिक्यूलर फिल्ड याने विचार-विकार वहां
मौजूद रहते है, तो रिवाज से उन्हें नष्ट करने के लिए वहां दिया-मोमबत्ती
लगाते है, जिसके ज्योति के संग वह मॉलिक्यूलर फिल्ड नष्ट होना शुरू होता है
और कुछ दिनों तक वहां लोगों का रिश्तेदारों से मिलने के लिए आना और
अलग-अलग धर्म के हिसाब से विधि होती है, मतलब अलग-अलग से मॉलिक्यूलर फिल्ड
तैयार किया जाता है, जो मरने वाले व्यक्ति ने मॉलिक्यूलर फिल्ड तैयार किया
था उसको नष्ट करने का काम करता है और तीसरा दिन, 13 दिन, 14 दिन लोगों को
खाना बनाके खिलाया जाता है भोजन का मायक्रो फिल्ड भी मरने वाले का मायक्रो
फिल्ड नष्ट करने में मुख्य सहाय्यक होता है और इस तरह वह विकार-विचार नष्ट
करते है। समशान में लेके जाने के बाद कुछ भाषण करने वाले होते हैं तो वह
कहते है आत्मा को शांति मिले, इत्यादि, यह एक जनरल स्टेटमेंट है। इसका मतलब
लोगों का समझ यह है कि आत्मा यह अशांत भी रह सकता है, इसका मतलब आत्मा ही
मनोवृत्ति है ऐसा ही लोगों का पिढ़ी दर पिढ़ी समज है और वह आत्मा को शांति
मिले ऐसी प्रार्थना करते है।
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आत्मा की व्याख्या क्या है
?
इसके उपर आत्मा का समझ है। अगर मनोवृत्ति को आत्मा समझे तो फिर इन्सान
जिंदगी भर मनोवृत्ति निकालती रहती है और वह नष्ट होके दूसरी मनोवृत्ति
निकलती है अगर जिस वक्त यह मनोवृत्ति शांति निर्गुण निराकार होती है उस
वक्त वह चेतना, चैतन्य से उसका मिलन होता है, जब उसका मन शुद्ध रहता है उस
थोड़ेसे वक्त ही वह चेतना से मिलता है उसी अवस्था को लोग सर्वोच्च स्थान का
नाम देते है। योग का मतलब ही चित्तवृत्ति निरोध है, मतलब चित्त, मन में कोई
वृत्ति नहीं और दुनिया के करोड़ों लोग चाहे जो भी धर्म, पंथ के हो इस अनुभव
को प्राप्त करने और उसको बढ़ाने और 24 घंटे उस अवस्था में रहने के लिए
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, बौद्ध विहार, जैन मंदिर जाते हैं और घर/
आश्रम में भी साधना करते है, जो कि अलग-अलग मुद्राएं और पोझीशन्स हैं। यह
मुद्राओं से अंदर से होने वाले धारा प्रवाह, ऊर्जा प्रवाह एक जैसा ही होता
है। मतलब अंदर से एक ही साधना सब लोग कर रहे है लेकिन बाहरी तौर से वह सब
अलग-अलग दिखता है। जहाँ लोग रहते हैं उस वातावरण की वजह से उनके पोषाख,
भोजन, भाषा पिढ़ी दर पिढ़ी आने वाले संस्कारों से अलग-अलग लगता है, लेकिन
साधना से ऐसा लगता है कि वह एक तत्व को पाने की अनुभव करने की कोशिश कर रहे
है, भलाई इसको अलग-अलग नाम दे रहे हो।
सर्वोच्च स्थिति का अनुभव
प्राप्त करना
सर्वोच्च स्थिति का अनुभव
प्राप्त करना (शांति का, प्रसन्नता का, पवित्रता का, शुन्य का, शरीर और मन
का खाली होने का एहसास)। वहीं आध्यात्मिक आखिरी ज्ञान है। आज की भाषा में
खुद को समझने के लिए हम अपने आपको समझने की कोशिश करते हैं। ज्ञान से,
अनुभव से हम ठोस द्रव पदार्थ और वायु पदार्थ से बने है जिसमें चेतना का काम
बनना जन्म से (सेल रूप से) चालू है। चेतना से हम ठोस, द्रव और वायु यानी
अपना अनुभव करते है और अनुभव से जो संस्कार (मेमरी) बनी है उसका अनुभव करते
है. वह अनुभव हम सेंसेस यानी आँख, नाक, कान, त्वचा, जीव्हा और मन (नर्वस
सिस्टीम) यह 6 इंद्रीय द्वारा करते हैं। अगर आँख बंद किए गए तो दिखना बंद,
कान बंद तो सुनना बंद, त्वचा का एहसास स्पर्श द्वारा स्पर्श बंद तो एहसास
बंद, नाक स्वाभाविक रूप से चलता है तो बंद के बराबर है। जिव्हा कुछ
खाया-पिया नहीं तो बंद और अब रह गया मन, जिसमें हमारे अंदर जो भी रासायनिक,
इलेक्ट्रीक प्रक्रिया चलती है क्योंकि हमारा शरीर पुरा बीईएफ मॉलीक्युलर
फिल्ड फ्लो से भरा होता है। उसकी वजह से मन में विचार-विकार जो भी संस्कार
मन में बने है उससे एहसास होता है। अगर मन को शुद्ध करलो तो जो अनुभव आता
है उसे सर्वोच्च स्थिति का अनुभव कह सकते है, जो शन्य का, शांती का,
पवित्रता का अनुभव होता है। अगर आप डार्क रूम, साऊंड प्रुफ, ओडर प्रुफ
रूम, टेम्प्रेचर प्रुफ रूप में बैठते है तो आपके 5 इंद्रीय नहीं के बराबर
करना सुलभ हो जाता है। तो आपका इन पुट करीब-करीब बंद हो गया, अब रह गया मन।
मन के विकारों को शुद्ध करना और उसमें सबका भला हो, सबका मंगल हो यह
संस्कार डालना इसके लिए शरीर में जहां तक सांस जाती है उस खाली जगह को नाडी
कहते है. बाहर से यह सास अंदर जाने के बाद उसे हम बीईएफ मॉल्युक्यूलर फ्लो
(धारा प्रवाह, प्राणशक्ती प्रवाह इत्यादी) यह फ्लो अपने शरीर और मन का साफ
करने में मदद करता है।
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जैसा-जैसा यह फ्लो अंदर तक बढ़ना कम होता है वैसा यह
खाली जगह है वहां टॉक्झीन याने कचरा वातावरण, खानपान, विचार-विकार के कारण
पैदा होता है, उसका एहसास होता है। इसका मतलब शरीर का टॉक्झीन कम करना या
खत्म करना है तो पूरे शरीर में फ्लो हर वक्त चालू रहना चाहिए और शरीर में
फ्लो चालू रहेगा तो विचार-विकार कम होंगे और धीरे-धीरे चित्त-मन शुद्ध-पाक
हो जायेगा, तो वह स्थिति सर्वोच्च स्थिति का अनुभव बोलते है। चेतना को
सिर्फ चेतना- चैतन्य का अनुभव। सांस नाक से अंदर जाती है कभी बायें से कभी
दायें से या कभी दोनों नासिकासे और यह अंदर का फ्लो पूरे शरीर में सर से
लेकर हाथ-पांव के पांचों उंगलियों तक जाता है, नाखून और बाल छोड़के, इसका
मतलब सारे शरीर में बी.ई.एफ. याने प्राणशक्ती, धाराप्रवाह चलता है और उसका
उपयोग करके हम अपना शरीर, मन, साफ कर सकते है। स्वाभाविक रूप से सास चलता
है तो उसका एहसास भी नहीं होता। पुराने लोगों ने चाहे कोई भी धर्म का हो
उन्होंने यह बात को अच्छी तरह समझा, जो खाली जगह याने नाडी। रोज सुबह, शाम
कई धर्मों में दोपहर को भी कुछ शरीर की मुद्रा बनाकर जिसमें बीईएफ विशिष्ट
जगह पर प्रवाहित करके शरीर और मन के मल को साफ रखके सर्वोच्च स्थिति का
अनुभव प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है और यह प्रक्रिया जन्म से मृत्यु
तक चालु रखने के हिसाब से रोज एक पूजा विधि, नमाज विधि चालू किए, जिससे यह
फ्लो सारा शरीर में जा सके और शरीर, मन शुद्ध हो ताकि शरीर के पूरे हिस्से
सर से पाँव तक अच्छे ढंग से काम कर सके और खुद के साथ दूसरों को भी चैन से
शांति से जिने दे। अगर यह फ्लो धीमा हो जाए और कुछ दिन के शरीर के साथ
रिअॅक्शन होकर द्रव पदार्थ में और बाद में ठोस पदार्थ में बदल जाने के बाद
शरीर में रुकावट पैदा करके शरीर की और मन की हानी कर सकता है। इसलिए हर
धर्म में पूजा विधि में इसको सारे शरीर में अलग-अलग पोस्चर्स - मुद्रा
बनाके घुमाया जाता है और सर्वोच्च शक्ति जो कि सबसे पावरफूल है उसके प्रति
समर्पित भाव से मन को शुद्ध किया जाता है। जितना देर मन साफ-पाक रहेगा
उतने देर आपको सर्वोच्च स्थिति का अनुभव होता रहेगा। जिससे आपको जिंदगी में
शांति, सुकुन मिलते रहेगा।
समानता और विज्ञान
1. जो फोटो में समान मुद्रा या समान बायो एनर्जी फ्लो है उसके नंबर अ), ब), ......... से ह) तक अ) हाथ, पैर, मुँह धोना/घर से स्नान करके आना। ब) प्रार्थना स्थल, प्रार्थना और सर्वोच्च स्थिति के प्रति श्रद्धा। क) बायो एनर्जी (मॉलिक्यूलर फ्लो) तयार करने की सामग्री, बचपन से धार्मिक संस्कार, जैसा कि मंदिर दिखा की नमस्कार करना आदि। ड) नमस्कार हाथ जोड़ के थोड़ा झूक के/ हाथ खोल के खड़े या बैठे हुए मुद्रा में। इ) माथा टेकना, सजदा आदि। फ) दुआ, आशिर्वाद, प्रार्थना, ब्लेसिंग्स, कृपा, मैत्रीभाव आदि। ग) पवित्र स्थल को परिक्रमा (हिंदू, दर्गाह, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, गुरुद्वारा)। स) नामस्मरण और पवित्र चिन्ह। ह)
सभी धर्मों की रोज की साधना में सुरू से आखिरी तक साधक की साधना में बीईएफ
बाए पैर से मेरुदंड, बाया धड, बाया हाथ, गर्दन, मुँह और बाया मस्तिष्क तक
और दाहिने पैर से मेरुदंड, दाहीना धड, दाहीना हाथ, गर्दन, मुँह और दाहिने
मस्तिष्क तक और आगे टालू तक और आगे टालू की बाहर तक चलता है, बहता है और
दोनों हाथ पैर की उंगलियों से दोनों मस्तिष्क तक मेरुदंड के नीचे से उपर तक
और आगे टालू तक आने वाले मसल्स, ऑर्गन्स, ग्लँडस्, (इंडोक्राइन,
एक्झोक्राइन) सब इंद्रिया, पेरीफरल नर्वस सिस्टीम और सेंट्रल नर्वस सिस्टीम
को साफ करता है। उसमें का टॉक्सीन निकालता है तो शरीर, मन शुद्ध होता है।
मन, शरीर खाली होता है, मन शांत होता है, जिससे सर्वोच्च स्थिति के पास
सर्वोच्च शक्ती के पास होता है उसका अनुभव उसको आता है।
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