सत्य अनुभवो पर लिखित ड़ॉ अजित देशमुख की अलौकिक किताब ।
धर्मोकी साधना समानता और विज्ञान
चौथा भाग 4 /6
विज्ञान
का मतलब नियम जो किसी एक को नहीं सबको लागू होता है (समान परिस्थिति में)।
शरीर का ऊर्जा फ्लो आकृती क्र. 1 नुसार होना चाहिए लेकिन वातावरण, खान-पान
की आदत, बुरी आदतें, आलस, मन का बराबर न सोचना, विचार-विकार व व्यायाम की
कमी इससे उसमें टॉक्सीन पैदा होते है और शरीर का फ्लो बिघड जाता है और
टॉक्सीन के रासायनिक गुणधर्मों जो कि मानस लेवल पर होते है और टॉक्सीन जड
होने से नाडी संस्थान (शरीर का खाली भाग) खराब, बंद या छोटा या संकीर्ण
होता है और संबंधित व्यक्ति शरीर और मन के मल के कारण मन से और शरीरसे
धिरे-धिरे बीमार पड़ता है। ढलती उमर के साथ बीमारी बढ़ती है जिससे उसे खुदको
और दूसरों को उसकी वजह से तकलीफ होती है। इसलिए धर्मस्थापकों ने, गुरुओं
ने, ऋषी-मुनियों ने ऐसी विधी निकाली जिससे उसका शरीर, मन भी अच्छा और वह
सर्वोच्च स्थिति के पास या सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त कर सके और उसका खुद
का और दूसरों का भी समय आराम से गुजर सके।
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साधना का मनुष्य शरीर पर होनेवाला प्रभाव
विज्ञान पढ़ने तो एक
बात पक्की मालूम हो गई कि प्राणवायु अगर किसी व्यक्ति को 5 मिनीट तक न मिले
तो उसका जीवन खत्म होता है। उसको सिर्फ प्राणवायु ही बचा सकता है। इतना
महत्व इस प्राणवायु को है तो यह जो साधना करते है उसमें उसकी भूमिका क्या
है, यह सबसे महत्व की बात है। शरीर में प्राणवायू अंदर जाता है और
कार्बनडाय ऑक्साईड बाहर आता है और खाने के साथ और ग्लैंड से पोषक तत्वे या
जिनकी गरज नहीं जो भी सुक्ष्म रूप में यानी वायु रूप में धारा प्रवाह के
रूप में शरीर के अंदर महसूस होता है मैं उसे बायो एनर्जी या मॉलीक्यूलर
एनर्जी और यह मॉलीक्यूलर एनर्जी कोई भी दुनिया का व्यक्ति हो उसके अंदर
रहती है तो यह आधार लेकर मैंने हिंदू, मुस्लिम, शिख, इसाई, बौद्ध, जैन के
रुटीन साधना जो प्रार्थना स्थल या घर पर करते हैं इसका अभ्यास किया। इसमें
भाग लेने वाले लोग वही धर्म के है. उन्होंने कॅमेरा के सामने साधना की या
इंटरनेट से साधकों का और गरजू बातों का चित्रण किया और मुझे धारा प्रवाह का
1994 से अनुभव होने से मैंने बायो एनर्जी (मॉलीक्यूलर एनर्जी) कौन से
मुद्रा में कहा जाती है, उसका अभ्यास किया जो की फोटोग्राफ के पन्नों में
लिखा है। जो भी हम इंद्रियों से आँख, कान, नाक, स्कीन, जीव्हा से महसूल
करते हैं उसका कारण अपने शरीर में नर्वस सिस्टीम के काम करने से मालूम होता
है। यह नर्वस सिस्टीम के दो प्रकार है सेंट्रल नर्वस सिस्टीम और पेरीफेरल
नर्वस सिस्टीम। सेंट्रल नर्वस सिस्टीम यह सिर्फ ब्रोन और स्पाइनल कॉर्ड में
होती है और बाकी सब जगह पेरीफेरल नर्वस सिस्टीम होती है। पेरीफेरल नर्वस
सिस्टीम के दो भाग है - सोमॅटीक नर्वस सिस्टीम और ऑटोनॉमीक नर्वस सिस्टीम,
दुसरी नर्वस सिस्टीम स्पायनल कॉर्ड से लंग्स, ह्मदय, पेट, आंते, ब्लॅडर और
सेक्स ऑर्गन इत्यादी में जाते है, नर्वस सिस्टीम में जो भी मेसेजेस शरीर
के अंदर से या बाहर से आते हैं उनको पेरीफेरल नर्वस सिस्टीम से सेंट्रल
नर्वस सिस्टीम तक भेजना और वहां पे उसका अर्थ लगाना और जो भी निर्णय है
रिस्पॉन्स है उसे मसल्स् या ग्लँडस् को देना। सेंट्रल नर्वस सिस्टीम
(सी.एन.एस.) और पेरीफेरल नर्वस सिस्टीम (पी.एन.एस.) से ही हम अंदर या बाहर
के सिग्नलस् को/मैसेजेस को समझते है। सोमॅटीक नर्वस सिस्टीम में क्रॅनियल
और स्पायनल नर्व फायबर होते है. क्रॅनियल नर्वस सिस्टीम ब्रोन से आँख,
मुँह, कान और सर के अलग भागों में जाते है। पी.एन.एस. यह व्हर्टेब्राल
कॉलम अॅण्ड स्कल या ब्लड ब्रोन बॅरीयर द्वारा प्रोटेक्ट नहीं किया है।
इसलिए पी.एन.एस. में टॉक्सीन जमा होते हैं, हो सकते हैं और यह एक
महत्वपूर्ण मुद्दा है जो कि सब साधना में टॉक्सीन्स साफ करने का काम होता
है। यह बात पूरे शरीर को भी लागू है। जहाँ टॉक्सीन से रुकावट पैदा होती है
और उसकी केमिकल प्रॉपर्टी से मन भी पैदा होता है जैसा दुःखदायक संवेदना,
क्योंकि जो जड होता है वह मानस लेवल पे दुःखदायक होता है। साधना से जड़ से
हलका और धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है और दुःखदायक संवेदना सुखदायक संवेदना
में बदल सकती है।
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सोमॅटिक नर्वस सिस्टीम यह अंडर व्हॉलेंटरी कंट्रोल
है और ब्रोन से आखरी के ऑर्गन जैसा की, मसल्स तक सिग्नल भेजती है
ट्रान्समीट करती है। सेन्सोरी नर्वस सिस्टीम यह सोमॅटिक नर्वस सिस्टीम का
ही हिस्सा है और यह सेन्सोरी ऑर्गन से सिग्नल्स ब्रोन या स्पाइनल कॉड को
भेजती है। अगर आपके सोमॅटिक नर्वस सिस्टीम में टॉक्सीन् है तो आपके
सिग्नल में रुकावट/बाधा आ सकती है। अॅटोनॉमिक नर्वस सिस्टीम यह
इनव्हॉलेंटरी नर्वस सिस्टीम है। जो कि इंटरनल बॉडी फंक्शन्स को रेग्युलेट
करती है, कंट्रोल करती है। शरीर में नर्वस सिस्टीम का काम सेन्स करना अंदर
या बाहर की घटनाओं का उसके उपर पहचान की प्रतिक्रिया देना और कंट्रोल करना,
यह स्नायू से या ग्लँड से (इन्डोक्राईन या एक्झोक्राईन)। यह काम वह
न्यूरॉन्स द्वारा करती है, जिससे वह बनी है।
चेता
संस्था दो प्रकार की है, मध्यवर्ती चेता और पेरीफेरल चेता. सीएनएस ब्रोन
और मेरुदंड में रहती है और बाकी सब शरीर में पेरीफेरल होती है. सीएनएस
कवटी और व्हरटेब्राा से सुरक्षित, संरक्षीत होती है, लेकिन पीएनएस पुरे
शरीर में होने से उसमें इजा हो सकती है और उसके अंदर टॉक्सीन भी जमा होते
हैं। टॉक्सीनस् जड, तरल, म्युकस और वायु रूप में भी होते है। और यह
टॉक्सीन के वजह से ही अपना शरीर और मन खराब होता है, बीमार होता है तो अपना
उद्दश्य यह होता है कि बायो एनर्जी फ्लो कैसा शरीर और मन को शुद्ध करके
अपने मन की शांती पवित्रता का अनुभव देता है। सभी धर्मों में प्रार्थना
करने से पहले हाथ पैर, मुँह धोेेने का रिवाज है, पद्धत है। अगर कोई बाया
पैर धोता है तो बायोएनर्जी फ्लो (बी.इ.एफ.) बाए पैर की उंगलियों से निकलकर
आगे पूरे बाए पैर से गुजरकर बाए धड़ के साथ स्पायनल कॉर्ड से बाए मस्तिष्क
तक जाती है। इसका मतलब हुआ कि जहां-जहां उसे रुकावट नहीं है वहां से वह बाए
पैर की उंगलियों से बाए मस्तिष्क तक गुजरकर नाडी संस्थान साफ करती रही है,
वैसे ही जब वह बाया हाथ धोता है तो बी.इ.एफ. बाए हात की उंगलियों से
निकलकर जहां-जहां रुकावट नहीं वहां से पूरे बाए हाथ से गुजरकर बाए कंधे के
साथ स्पॉयनल कॉर्ड से बाए मस्तिष्क जाती है और यह बात दोहराने से कुछ
रुकावट भी कम करती है।
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वैसा ही दाहीना पैर धोता है तो बी.ई.एफ. दाहीने पैर
की उंगलियों से निकलकर जहां-जहां रुकावट नहीं है उससे गुजरकर पुरा दाहीना
पैर से दाहीने धड़ के साथ स्पायनल कॉर्ड से दाहीने मस्तिष्क तक गुजरती है।
वैसा ही जब साधक दाहीना हाथ धोता है तो बी.ई.एफ. दाहीने उंगलियों से निकलकर
दाहीने हाथ से जहां-जहां रुकावट नहीं उससे गुजरकर दाहीने कंधे के साथ
स्पायनल कॉर्ड से दाहीने मस्तिष्क तक जाती है, यह बात दोहराने से कुछ
रुकावट बी.ई.एफ. से कम हो जाती है। वैसा ही मुँह धोने से बी.ई.एफ. मस्तिष्क
के दोनों भाग में जाती है और दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह धोने से पूरे
शरीर के साथ पुरा मस्तिष्क अॅक्टीवेट, स्टीमूलेट होता है। और शरीर,
मस्तिष्क की कार्य करने की क्षमता और बढ़ जाती है और यह क्रिया से कुछ
टॉक्सीन नाडी संस्थान से कम होने से उसकी क्षमता यानी शरीर की क्षमता बढ़ती
है और टॉक्सीन कम होने से मन पहले से शांत, पवित्रता महसूस करता है। सुबह,
श्याम, दोपहर और उससे भी ज्यादा टाईम जो रोज की साधना करते है उसके पहले
वह दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह धोते हैं तो उस वक्त जो बी.ई.एफ. ज्यादातर
प्राणवायू उनके दोनों हाथ, पैर की उंगलियों से मस्तिष्क तक गुजरकर पुरे
शरीर में जो रुकावट, (खानपान, बुरी आदतें, गलत विचार, विकार, वातावरण से
शरीर में बनती है, जिसके वजह से मन भी विकारग्रस्त होता है।) वह कम होती है
और उसे हाथ-पैर मुँह धोने से फायदा होना शुरू होता है। वैसे ही उसके बचपन
में घर के संस्कारों से वह साधना पूजा, देवदर्शन, नमाज, इत्यादी करने जाता
है तो उसके अंदर सर्वोच्च स्थिति के पास जाने की सर्वोच्च शक्ति के प्रति
श्रद्धा जागृत होती है, जो साधना करने में सहाय्यक होती है।
दोनों हाथ,
दोनों पैर और मुँह धोने से बी.ई.एफ. उंगलियों से निकलकर सिर के अंदर तक
शरीर को साफ करता है। साथ-साथ पी.एन.एस. को भी अॅक्टीवेट करता है। क्योंकि
यह नर्वस सिस्टीम का काम ही है। अंदर या बाहर के वातावरण को सेन्स करे,
रिस्पॉन्स दे और कंट्रोल करे और पूरी बी.ई.एफ. शरीर के उंगलियों से सर के
सिरे तक जाती है तो पी.एन.एस. और सी.एन.एस. दोनों को अॅक्टीवेट करती है और
उस पर हमने कोई प्रतिक्रिया नहीं की तो हमें शांती महसूस होती है। शुरू में
प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन मालूम पड़ा कि यह बी.ई.एफ. है तो
प्रतिक्रिया बंद हो सकती है। शरीर में फ्लो कैसा होना चाहिए उसके लिए एक
आकृति क्र. 1 दी है, तो दोनों हाथ पैर और मुँह धोने से टॉक्सीन बहुत कम
होने से उसे अच्छा लगता है। उंगलियों से सिर तक बी.ई.एफ. जाने का समझने के
लिए अपन नर्वस सिस्टीम का फंक्शन जो न्यूरॉन द्वारा चलता है उसे समझने की
कोशिश करेंगे। इंद्रियों से सेन्सरी न्यूरॉन से संदेश ब्रोन या स्पायनल
कॉर्ड तक जाता है। इन्टर न्यूरॉन्स यह सेन्सरी न्यूरॉन्स और मोटर
न्यूरॉन्स को जोड़ता है और जो भी संदेश प्राप्त होता है उसका अर्थ लगाता है।
(ब्रोन अॅण्ड स्पायरल कॉर्ड में) और मोटर न्यूरॉन्स जो भी अर्थ प्राप्त
होता है उसे मसल्स या ग्लँडस् को देता है। जिससे प्रतिक्रिया होती है,
रिस्पॉन्स होता है, कंट्रोल होता है।
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