सत्य अनुभवो पर लिखित ड़ॉ अजित देशमुख की अलौकिक किताब ।
धर्मोकी साधना समानता और विज्ञान
पांचवा भाग 5/6
प्रार्थनास्थल में जाने के विचार से या प्रार्थनास्थल पर पहुँचनेसे बचपन से जो संस्कार दिए उससे उस जगह प्रती श्रद्धा जागृत होती है, (यह संस्कार हर घर के बड़े ने हर धर्म के प्रार्थना स्थल के प्रती की, सब प्रार्थनास्थल पवित्र ठिकाण है यह देना जरूरी है, यह देश कर्तव्य है, वि·ाकर्तव्य है, इन्सानियत है।) अगर उसमें मुर्ती हो तो उसके प्रति भी श्रद्धा जागृत होती है और गुरुद्वारा या दर्गाह जिसमें मूर्ति नहीं होती फिर भी वह एक पवित्र ठिकाण होने से संस्कारों से उसके प्रति श्रद्धा निर्माण होती है और जो भी प्रार्थना स्थल की सजावट, पूजा की सामग्री, फुल, फल, दिया, प्रसाद और वहां चल रहे किर्तन आरती उससे वहां एक प्रसन्न वातावरण सब इंदियों द्वारा मनसे नर्वस सिस्टीम से तयार होता है और वह पवित्र, शांत वातावरण वहाँ पर होने से जो भी साधक वहां जाता है, उसे वह वातावरण महसूस होता है और वह भी उस वातावरण को बढ़ाने में सहाय्यक होता है। हर धर्म के साधना के फोटो में साधक की साधना दी हुई है और बी.ई.एफ, कैसा कहा जा रहा है और उससे कौनसा ब्रोन और शरीर का पार्ट अॅक्टीवेट हो रहा है यह दिया है। साधना के बाद सभी धर्मों में कृपा के लिए दुआ, प्रार्थना, ब्लेसिंग दिल से करने की कोशिश करते है। छोटा रहा तो अपने लिए, परिवारवाला रहा तो परिवार के लिए और संत/फकीर रहा तो दूसरे के भले के लिए दुआ प्रार्थना करता है । सच्ची लगन से प्रार्थना और उसको लगने वाली मेहनत हो तो प्रार्थना जरूर सफल होती है।
प्रार्थनास्थल में बिताये गए कुछ पल आपके लिए बड़े लाभदायक सिद्ध हो सकते है।
बड़ा होने के बाद अपने ध्यान में आता है या लाया गया तो बुरे भावना के
विचार और अच्छे भावना के विचार हम खुद ही तयार करते है। अगर हम जान-बुझकर,
सोच-समझकर अच्छे भावना के विचार करने की पूरी कोशिश करते तो अपने बुरे
भावना के विचार कम हो जाएंगे और अच्छी भावना होने लगेगी और अपना मानस अच्छे
भाव से भरेगा और अपनी प्रार्थना पुरी होने लगेगी. यह अपनी ही क्रिया है।
जिसके उपर अपना वि·ाास नहीं। कोई भी व्यक्ती अच्छी भावना खुद तयार कर सकता
है, सिर्फ वह सतर्क रहे कि यह करना है। दोनों हाथ-पैर, मुँह धोने से यह
मालूम पड़ता है कि बी.ई.एफ. बाए बाजू से बाए मस्तिष्क में और दाहीने बाजु से
दाहीने मस्तिष्क में जाता है और उन्हें पूरे शरीर के साथ अॅक्टीवेट करता
है, जिससे उनकी क्रिया बढ़ती है उनके कार्य बढ़ते हैं। जैसा कि
लेफ्ट
ब्रोन फंक्शनस् :- प्रेझेन्ट अँड पास्ट, अॅनालॅटीकल थॉट, राईट हँड
कंट्रोल, नंबर स्कीलस्, सायन्स, मैथ्थस् लॉजिक, भाषा, रिजनिंग, क्वॉशस ।
राईट
ब्रोन फंक्शन :- प्रेझेन्ट अँड फ्यूचर, आर्टस्, पोएट्री, 3 डी फॉर्मस,
क्रिएटीव्हीटी, इमॅजीनेशन, इन्टूएशन, इनसाईट, होलीस्थीक थॉट, म्युझीक,
लेफ्ट हँड कंट्रोल, ड्रॉर्इंग और केअर फ्री यह फंक्शनस अपने स्वभाव से एक
बाजू के बढ़ सकते है और दोनों बाजू बराबर बढ़ाने के लिए हम रोज की साधना घर
या प्रार्थनास्थल पर करते है। क्योंकि एक बाजू के मस्तिष्क का कार्य बढ़ने
से दोनों बाजू बराबर बढ़ना उस व्यक्ति के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होता
है।
आकृती 1 की फोटो में बी.ई.एफ. कहां जाता है यह बताया है, जैसा साधना में साधक अपना मन लगाता है और साधना ठिक तरह से करता है तो बी.ई.एफ. उसका शरीर उंगलियों से सिर के सिरे तक दोनों बाजू से लेफ्ट अँड राईट साफ होता है, तो बी.ई.एफ. मस्तिष्क के दोनों हिस्सों तक उपरी भाग तक पहुँचता है और पुरा मस्तिष्क बी.ई.एफ. से भरने से टालू/ब्राम्हरंद्र के मार्ग से पूरा शरीर अंदर से भरता है और बी.ई.एफ. दो हिस्सों में न रह कर पूरा एक हिस्सा बन जाती है और पल्सेस जैसा अनुभव अब दाए या बाए मस्तिष्क में न होकर टालू में होता है और उस वक्त आप निर्विचार हो जाते है। आपकी कॉन्शीयस स्टेट बाहरी शक्ती से जुड़ जाती है। इस वक्त आप सर्वोच्च स्थिति में सर्वोच्च शक्ति के पास होते है। यह स्थिति में व्यक्ति के दोनों मस्तिष्क एक सरीके काम करते हैं नाकि बाया ज्यादा, दाहिना कम या दाहिना ज्यादा बाया कम। आपका शरीर ज्यादा से ज्यादा साफ है उसमें नहीं के बराबर पैर से सिर तक कम से कम टॉक्सीन है तो आपका बीईएफ आकृती 1 जैसा रहेगा, इसका अनुभव आपको आएगा अन्यथा बीईएफ जहाँ से जगह मिली वहां से जाएगा।
आकृती - 1
आकृती
1 में बायो एनर्जी फ्लो दिया हुआ है अगर यह ऐसा रहता है तो शरीर और मन को
स्वास्थ्य प्राप्त होता है दाहिने हाथ पैर की उंगलियों से दाहीने सर तक
बायो एनर्जी फ्लो दिखाया है। वैसा ही बाए हाथ पैर की उंगलियों से बायो
एनर्जी फ्लो बाए सर तक दिखाया है और यह प्रवाह वैसाही रहता है और बचपन से
सर्वोच्च शक्ति के प्रती श्रद्धा बढ़ाना और उसके करीब जाना यही सब धर्मों के
साधना का उद्देश्य है। यह उनके साधना के तरिके से और बायो एनर्जी फ्लो से
समझ में आता है।
हिंदू साधक :- 1.
दाहिना पैर और हाथ धोने से बीईएफ दाहिने पैर से मेरुदंड, दाहीना धड,
गर्दन, मुँह से दाहिने मस्तिष्क (आकृती 1) तक जाता है और बीच में आने वाले
मसल्स, ऑर्गन्स, ग्लँडस्, (इंडोक्राइन, एक्झोक्राइन), सब इंद्रिया,
पेरीफेरल नर्वस सिस्टीम, सेंट्रल नर्वस सिस्टीम सब साफ करता है और उसमें
फंसा हुआ टॉक्सीन निकालता है। वैसा ही दाहिना हाथ धोने से बीईएफ दाहिने हाथ
से कंधा, मेरुदंड, गर्दन, मुँह से दाहिने मस्तिष्क तक जाता है और यह रस्ते
में आने वाले सर्व भाग को साफ करता है, टॉक्सीन निकालता है तो साधक का
शरीर, मन साफ होता है और मन शांत होता है।
2. बाया पैर और दाहीना हाथ धोने से साधक का बीईएफ बाए पैर से मेरुदंड, बाया धड, गर्दन, मुँह से बाए मस्तिष्क तक जाता है और साथ में दाहिना हाथ धोने से बीईएफ दाहिने हाथ से कंधे से, मेरुदंड से (आकृति 1) गर्दन, मुँह से दाहिने मस्तिष्क तक जाता है और बीच में आने वाले मसल्स, ऑर्गन्स, ग्लँडस्, (इंडोक्राइन, एक्झोक्राइन), सब इंद्रिया, पेरीफेरल नर्वस सिस्टीम, सेंट्रल नर्वस सिस्टीम सब साफ करता है।
3. 4 जैसा।
4. दाहिने हाथ से मुँह धोने से दाहिने हाथ से बीईएफ मुँह तक बहता है, चलता
है
और दाहिने हाथ से मुँह तक आने वाले सब शरीर के मसल्स, ऑर्गन्स, ग्लँडस्,
(इंडोक्राइन, एक्झोक्राइन), सब इंद्रिया, पेरीफेरल नर्वस सिस्टीम, सेंट्रल
नर्वस सिस्टीम को साफ करता है। (आकृती 1)
5. बी.ई.एफ. नीचे की तरफ
6. फिर साधक दाहिने हाथ से घंटा बजाता है तो उस वक्त दाहिने हाथ से बी.ई.एफ. उसके दाहिने मस्तिष्क में जाता है और उस वक्त वह दाहिने मस्तिष्क के कार्य को बढ़ावा देता है।
7.
फिर आगे जाके वह दोनों पैर के उंगलियों परबैठकर दोनों हाथ जोड़कर भगवान की
मूर्ति को नमस्कार करता है इस वक्त इसके दोनों मस्तिष्क में बी.ई.एफ.
प्रवाह बढ़ जाता है (आकृती 1 नुसार) और यह बैठने के पद्धत से बीईएफ ज्यादा
जोर से बढ़ता है।अगर वह कुछ मंत्र या जप बोल रहा है तो यह बी.ई.एफ. उसमें
बदल जाता है। अन्यथा वह उस मंदिर में जमा होता है। और जब कोई भी साधक
मंदिर में जाता है तो उसको वह सेन्स होता है (बोध होता है)। उसके शरीर के
मुद्रानुसार उसके शरीर को साफ करता है तो मन भी शांत होता है।
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