सभी धर्मोकी साधना समानता और विज्ञान 2

    सत्य अनुभवो पर  लिखित ड़ॉ अजित देशमुख की अलौकिक किताब ।

                                  धर्मोकी साधना समानता और विज्ञान 

       दूसरा भाग    2 /6

              कई पूजा स्थान ऊँचाई पर होते हैं ताकि उपर चढ़ने से शरीर के अंदर का टॉक्झीन मॉलिक्यूलर फिल्ड रस्ते में निकलकर वहां पर मॉलीक्यूलर फिल्ड जमा होता है, जो कि पूजा करने वालों के मॉलीक्यूलर फिल्ड को खींचता है।  उसका शरीर मन साफ होता है और उसकी मॉलीक्यूलर फिल्ड की भरपाई प्रसाद खिलाकर की जाती है। इसलिए ज्यादा स्तर पर पूजास्थल पर प्रसाद लेकर जाते है और पूजा स्थल बनाने का मतलब ही है कि मॉलीक्यूलर फिल्ड/ऊर्जा फिल्ड तैयार करना है और प्रार्थना के दौरान इस धारा प्रवाह को प्रार्थना में बदल करना है और प्रार्थना के दरम्यान इस धारा प्रवाह से शरीर को अंदर से भी साफ करना है। पूजा स्थल इसलिए बनाया जाता है जिसके सानिध्य में मन प्रसन्न, शांत होता है, पवित्र होता है, जिसके लिए दिया, फूल, इत्र, गंध, हल्दी-कूंकू, प्रसाद आदि का उपयोग किया जाता है और इसके साथ ही सबसे महत्व का जो मॉलीक्यूलर फिल्ड वहाँ पर तैयार हो जाता है उसको अच्छे भाव में बदलना है, जैसे भला हो, मंगल हो, कल्याण हो, शांती हो, ताकि साधक को आगे यह भाव निकालने में मदद हो, क्योंकि वह उसके मेमरी में बसा हुआ है। अगर ये प्रार्थना में भाव साधक निकालता नहीं हो तो वह उसके लिए और समाज के लिए भी जो फायदा होना था वह नहीं होता और पूजास्थान जाने का जो उद्देश्य है वह पूर्ण रूप से सफल नहीं होता। 

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           मुझे 1970-71 पूजा के वक्त जो शक था कि ये पीतल और चांदी के भगवान को लेकर था, जिससे मेरी पूजा 1972 से बंद हो गई, लेकिन मैंने 1992 में मैंने ध्यान आसन के उपर ध्यान दिया और जो अनुभव मुझे 1994 में ऊर्जा प्रवाह के रूप में आया उसके बाद यह क्या है इसके उपर मैंने काम करना, अभ्यास करना, लेकिन अनुभव के आधार पर शुरू किया, उस वक्त के बाद मेरे मन में इतने धर्मों के पूजा स्थान में पूरे दुनिया के लोग प्रार्थना-पूजा कर रहे है तो यहां क्या है? अगर इसमें कुछ भी नहीं तो लोग इन पूजा स्थानों पर जो कि लाखों की संख्या में है, प्रार्थना-पूजा करने क्यों जाते हैं, कुछ तो सुक्ष्म महत्वपूर्ण होना चाहिए और मैंने पूजा स्थान में क्या होता इसका क्या महत्व है इसके उपर भी ध्यान देना शुरू किया और मुझे वहाँ पर बायोेएनर्जी याने मॉलीक्यूलर फिल्ड याने धारा प्रवाह याने उर्जा प्रवाह याने प्राण शक्ति इसका अनुभव आने लगा और वह बात मेरे भारत भ्रमण के दौरान पक्की हुई। मैंने उसकी हर बारीक नजर से अनुभव से समझना शुरू किया और समझ गया और कोई भी जिसको धारा प्रवाह, प्राण शक्ति, ऊर्जा प्रवाह का अनुभव हो उसको भी मेरी बात समझ में आएगी उसके लिए मैंने भारत और नेपाल के सैकड़ो पूजा स्थान, अलग-अलग धर्मों के पूजा स्थान को व्हीजिट किया और बाद में यह पक्का हो गया कि यहां पे जो भी मॉलीक्यूलर फिल्ड तैयार किए हुए है उससे कोई भी वहां जाने के बाद शांति और प्रसन्नता और धैर्य महसूस करता है। 


   

       कोई भी धर्म का पूजा स्थान हो उसमें सबसे पहले शुद्ध वातावरण, पवित्र वातावरण तयार किया जाता है। दूसरा शरीर को शुद्ध बनाया जाता है, जो कि अलग-अलग धर्म के अलग-अलग मुद्रा से पोजीशन से होता है। ऊर्जा स्तर पर एक ही जैसा है और उस प्राप्त ऊर्जा से शरीर को अंदर से जो खाली जगह है उसको साफ शुद्ध किया जाता है और आखिर में जो ऊर्जा बची है उसको अच्छे भाव में रूपांतर किया जाता है, जिससे पुराने संस्कार कुछ मात्रा में जाके नए संस्कार शरीर, मन में बन जाते है और आगे जाके वही अच्छे संस्कार बाहर आते है। शरीर जब पैदा होता है तब एक बिंदू से आगे माँ के गर्भ से बाहर आने तक और आगे भी एक कॉम्प्लेक्स रसायन होता है, रसायन है इसका मतलब इसमें कुछ गुण है, कुछ संस्कार है। बचपन में वह बहुत कम संस्कार का धनी होता है, जैसा सुविधा में सुख और असुविधा में दर्द। इसलिए बच्चों को भगवान का रूप याने वे भगवान के पास है ऐसा मानते है। जैसा-जैसा बड़ा होता है उसका खाना बदल जाता है और वह ज्यादा लोगों के संगती में आता है और उस में बहुत सारे संस्कार, विचार और विकार बन जाते है और बड़ा होकर उसके अनुरूप वह अपना मनोविकार निकालता है। अगर वह बुरे भाव को नष्ट करके वह अच्छे भाव जैसे भला हो, मंगल हो, दूसरों के प्रति प्रेम हो, ठहराके पैदा कर सके तो वह साधना हो गई और यही अध्यात्म का प्रमुख अंग है। वह कोई भी धर्म का हो अध्यात्म में अच्छे भाव ठहराके पैदा करना और उस दिशा में प्रत्यक्ष कृति करना अध्यात्म का प्रमुख अंग है।

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        चेतना याने चैतन्य याने शुद्ध चित्तवृत्ति याने शुद्ध मनोवृत्ति, मॉलिक्यूलर फिल्ड याने बायो एनर्जी फिल्ड याने बॅक्टिरिया फिल्ड प्लस इलेक्ट्रो मॅगनेटिक फिल्ड प्लस अॅटोमिक फिल्ड और रहा हुआ सुक्ष्म फिल्ड- शरीर में हर जगह रसायन फिल्ड मौजूद है। उस तरह हर जगह बाल और नाखून छोड़ के चेतना फिल्ड याने नर्वस सिस्टीम है। जिसके वजह से उस रासायनिक फिल्ड का अनुभव होता है, जैसा सुखद, दुखद, प्रिय, अप्रिय, दोनों नहीं और उस हिसाब से हम उसका अनुभव करते है। अगर आप चित्त वृत्ति को शुद्ध करेंगे तो शुद्ध चित्त वृत्ति तैयार होगी और उसको लोग अलग-अलग नाम देकर पुकारते हैं। नर्वस सिस्टीम याने चेतना के वजह से ही हम वि·ा का अनुभव करते है, अगर वह चेतना नहीं मतलब शुद्ध चेतना है तो उसके लिए वि·ा नहीं है। जैसा मरा हुआ शव उसके लिए वि·ा नहीं रहा, उसमें चैतन्य नहीं है, लेकिन तुरंत मरा हुआ शव जिसके आँख, लिवर, हार्ट, किडनी, त्वचा, इसमें चैतन्य रहता है, इसका मतलब जब तक प्राण वायू, प्राण शक्ति जो शरीर के भाग में है वह भाग जिंदा रहता है और वह भाग दूसरे के शरीर में लगाने से उसका ऑक्सीजन सप्लाय शुरू होता है तो आगे वह दूसरे शरीर में दूसरे शरीर के लिए काम करता है। जैसा कि अपघात होने से अगर पूरे शरीर को ब्लड सप्लाय जल्दी शुरू नहीं हुआ तो अपघातग्रस्त मर जाता है अन्यथा ऑक्सीजन सप्लाय पूरा मिलने से वह बच जाता है, इसका मतलब ऑक्सीजन के वजह से शरीर में शक्ती और चेतना एकसाथ पैदा होती है, उसके साथ बाकी शरीर में लगने वाली और चीजें है लेकिन सब चीजे होने के बाद भी 4 से 5 मिनट ऑक्सीजन सप्लाय बंद कर दिया तो वह मर जाता है। इसका मतलब पुरे शरीर को चलाने के लिए कम से कम ऑक्सीजन सप्लाय जरूरी है, अगर यह न्यूनतम से कम ऑक्सीजन सप्लाय होता है तो वह आदमी मर जाता है और यह ऑक्सीजन सप्लाय का न्यूनतम से ज्यादा और कम होना जब से पैदाईश होती है, तब से चालू रहता है और कोई वजह से जैसे ओल्ड एज, अपघात, बीमारी में यह ऑक्सीजन सप्लाय न्यूनतम से कम हो जाता है तो उसे मर गया समझते हैं।

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        जबकि कुछ समय से उसकी आँखें, लिवर, त्वचा इत्यादी अवयव बॉडी पार्टस् निकालके दूसरे शरीर में लगाते है तो फिर से वह अपना काम शुरू करते है। इसका मतलब जब शरीर मरता है तो उसके पूरे शरीर में न्यूनतम ऑक्सीजन नहीं होती (वही बात शरीर के भागों को भी लागू है) और उसका शरीर हम कहते है मर गया। जबकि यह प्राण शक्ति कम ज्यादा जन्म से ही कम लेकिन न्यूनतम से नहीं और ज्यादा होती रहती है। इसका मतलब आदमी अपनी प्राण शक्ति न्यूनतम नहीं ला सका, तो हम उसे मर गया ऐसा समझते है। इसका मतलब जो मॉलिक्यूलर फिल्ड न्यूनतम गरज से कम हो गया तो वह मर गया। इसका मतलब जो लोग शरीर से आत्मा निकल गया ऐसा कहते है, ऐसा लोगों का वि·ाास है, इसका मतलब जब इन्सान मरता है तो आत्मा को ही मनोवृत्ति समझा गया है। जो कि मरते समय वह क्या विचार और विकार करता है ऐसी मनोवृत्ति वहां उसके मनसे, नर्वस सिस्टीमसे निकलती रहती है और वह एक तरह का विचार-विकार ही रहता है।  अगर आप मरते वक्त शांत रह सके वह शांतिरूप, प्रवित्ररूप, मनोवृत्ति निकालता है। उस वक्त वह मुक्त हुआ ऐसा समझते है और शांतिरूप रहने के लिए अपने अंदर जो विचार-विकार का चक्र चालु रहता है कभी भूतकाल में, कभी भविष्यकाल में तो यह चक्र पर आप ध्यान दें तो वह आपके पकड़ में आ जाएगा और धीरे-धीरे आप स्टेबल शांत हो जाएंगे और आपकी अशांति दूर हो जाएगी और जब आप शांत रह सके मतलब आप शुद्धचित्त में लिन हो गए और आपको आपकी सर्वोच्च अवस्था का अनुभव प्राप्त होता है।  धिरे-धिरे यह सेकंद से मिनीट और मिनीट से घंटा और बाद में 24 घंटा उस अवस्था में रह सकेंगे। जब भी आप कोई निर्णय ले तो आप स्वयं को शांति में है कि नहीं यह चेक करे। अगर आप शांत है तो आपके निर्णय ज्यादा से ज्यादा सही रहेगे।

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2/6 क्रमशः 

सभी धर्मोकी साधना समानता और विज्ञान - भाग -3


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