इस जापानी जासूस कहानी बोहोत कम लोग जानते है।

          बीसवीं शताब्दी में हुवा द्वितीय विश्व युद्ध पहले विश्व युद्ध की तुलना में अधिक विनाशकारी युद्ध था। द्वितीय विश्व युद्ध में, चार करोड़ से अधिक लोग मारे गए, लगभग एक करोड़ घायल हुए या  कोईभी काम करनेलायक न बच पाए।  और अरबों रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई। इस युद्ध में पहली बार परमाणु बमों का इस्तेमाल किया गया था। परमाणु बम कितना खतरनाक होता है और उसके कितने दुष्परिणाम हो सकते है ये बात दुनिया को पता चली।  दुनिया ने इसके भयानक परिणाम देखे। यह कहानी जापानी नायक ताकेओ योशिकावा की है।  इस जापानी जासूस  कहानी बोहोत कम लोग जानते है। जिसका जिक्र जापान के इतिहास में बड़ा मायने रखता है। उसीकी कहानी जानते है।

       योशिकावा का जन्म 7 मार्च 1914  को शिकोकू  में हुआ था। उन्होंने जापान  के नौदल महाविद्यालय (इम्पीरियल नेवल अकादमी) में शिक्षा प्राप्त की और 1934 में अंतिम परीक्षा पहले नंबर से पास की। योशिकावा को प्रशिक्षु पायलट के रूप में जापानी नौसेना में प्रवेश मिला , लेकिन पेट में दर्द के कारण अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सका। 1937  में, योशिकावा को एक नौसेना जासूस के रूप में चुना गया था। प्रशिक्षण के बाद, उन्होंने टोक्यो में नौसेना मुख्यालय में काम करना शुरू किया और उन्हें अमेरिकी नौसेना के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। कुछ ही दिनों में उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स नेवी के बारे में इतना जान लिया कि वे इस विषय के तज्ञ के रूप में जाने जाने लगे।

      सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ। इस महायुद्ध के दौरान , योशिकावा ने नौसेना के कार्यालय में रोजाना के कार्य करते हुए अंग्रेजी नौसेना का एक रेडियो प्रसारण सन्देश पकड़ा। यह संदेश था कि "इंग्लैंड के सैनिकों को ले जाने वाले 17 जहाज पश्चिम अफ्रीकी फ्री टाउन (free town )से निकल चुके है "। चूँकि जापान जर्मनी का एक मित्र था, तो योशिकावा ने  वह संदेश जापान में जर्मन दूतावास को भेज दिया । जैसे ही संदेश प्राप्त हुआ, ज्यादातर अंग्रेजी जहाजों को जर्मन लड़ाकू विमान और नौसेना द्वारा समुद्र के पानी में डूबा दिये  गये । इंग्लैंड से इस तरह के एक महत्वपूर्ण संदेश को प्राप्त करने के बाद,  जर्मनी के अध्यक्ष हिटलर ने योशिकावा को एक विशेष पत्र भेजकर उनका आभार ब्यक्त किया था  ।
1940 में योशिकावा ने जापानी विदेश मंत्रालय के विदेशी अंग्रेजी भाषा कीपरीक्षा उत्तीर्ण की  बादमे उनकी  कनिश्ठ राजनैतिक अधिकारी (Junior Diplomat ) के पद पर नियुक्त कि गयी ।

      योशिकावा को अमेरिकी नौसैनिक का अभ्यास था, 27 मार्च, 1941 को, उन्हें प्रशांत महासागर के हवाई द्वीप के जापानी दूतावास में एक जूनियर अधिकारी के रूप में स्थानांतरित किया गया। दूतावास के प्रमुख, नागाओ किता (Nagao Kita ) उसके साथ जापान से आया था। हालाँकि योशिकावा एक दूतावास के अधिकारी थे, लेकिन उनका  असली काम संयुक्त राज्य अमेरिका की जासूसी करना था । जर्मन जासूस , बर्नार्ड कुएने (Bernard Kuehn ) हमेशा योशिकावा के संपर्क में रहते थे, और उनके बीच संदेशों का आदान-प्रदान चालू रहता था। गोपनीयता बनाए रखने के लिए योशिकावा का नाम तदाशी मोरीमुरा रखा गया था । योशिका ने जानबूझकर लंबे बाल बनाए रखे थे, और उनके कपड़े बहुत सरल थे।  हवाई द्वीप पर रहने वाले जापानी वंश के लोगो में  आसानी से घुला मिला हुआ था।

       हवाई द्वीप पर, पर्ल हार्बर (Pearl Harbor ) नामका एक बड़ा नौसैनिक अड्डा था। योशिकावा ने एक इमारत में दूसरी मंजिल पर जगह किराए पर ली, जिसमें से देखा जा सकता था।  कि अमेरिकी तट पर कितने युद्धपोत थे, कहा उन्हें बांधकर रखा गया था,  साथ ही साथ विमान  उड़नेवाली बंदूकें, तोफे और रडार सिस्टम भी थे।सबकुछ योशिकवा की नजर में था। हर दिन, जब भी समय  मिल  जाता, योशिकावा घूमता था और चारों ओर देखता था । जानकारी इकट्ठा करता था। शाम को, जहां स्थानीय लोग बातचीत करते है , वहासे योशिकावा को  खबरे मिलती थी । यह उसका दैनिक कार्य था, पर्यटकों के साथ किसी जापानी गर्लफ्रेंड  को लेकर घूमता था। , छोटा विमान भाड़ेसे लेकर उस क्षेत्र की तस्वीरें भी योशिकवा  खींची ।  यह उसका रोज क काम था।
 कांच के तल वाली छोटीसी नाव के साथ समुद्र के माध्यम से यात्रा करते समय, योशिकावा ने विभिन्न स्थानों में समुद्र की गहराई का रिकॉर्ड रखा। सुबह ज्यादा काम न करते हुवे योशिकावा दोपहर के भोजन के बाद कार्यालय से बाहर निकला करते थे, इसलिए उन्हें एक आलसी और कामचुकार  कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता था। कुछ ही महीनो में योशिकावा ने बहुत सारी  जानकारी निकाल ली।  अब इस जानकारी को जापान के नौसेना कार्यालय तथा विदेश मंत्रालय तक पहुंचाना यह भी एक बड़ा काम था।
    पर्पल  नामक सांकेतिक भाषा में जापानी विदेश मंत्रालय को योशिकावा ने समाचार भेजें। समाचार का विश्लेषण करने के बाद, समाचार को जापानी नौसेना प्रमुख के पास भेज दिया जाता था ।  जिस तरह से यह सन्देश जापानी परराष्ट्र मंत्रालय को मिलते थे उसी तरह अमरीकी नौसेना को भी मिलते थे।  लेकिन वे उसे समज़ नहीं पाते थे।पर  कुछ ही महीनों के भीतर, संयुक्त राज्य अमेरिका के विशेषज्ञों द्वारा पर्पल की सांकेतिक भाषाको क्रैक किया गया। अब वे उन ख़ुफ़िया संदेशो को पढ़ पाते थे। योशिकवा के द्वारा भेजे गए बोहोत सारे सन्देश  अमरीकी जासूसी अधिकारियो को अधिकांश संदेश बहुत मायने नहीं रखते थे। वह संदेश उन्हें महत्वपूर्ण नहीं लगे इसीलिए उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया ।

 24 सितंबर, 1941 को, जापानी विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी खुफिया जानकारी के साथ नागाओ किता  को संबोधित एक रेडियो संदेश पकड़ा। वास्तव में किता के नाम पर आया संदेश योशिकावा के लिए था, और इसका उद्देश्य अमेरिकी जासूसों को गुमराह करना था। उस संदेश में, पर्ल हार्बर को पांच भागों में विभाजित किया गया था, और इन पांच भागो में कितने अमेरिकी युद्धपोत जहाज है इसकी जानकारी भेजने के लिए कहा था।  , ऐसा संदेश  पत्र 'किता' को दिया गया था । अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने उस संदेश पर भी अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उनके पास कर्मचारियों की कमी थी और जितने कर्मचारी थे वे अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त थे ।
  15  अक्टूबर के आसपास उन सभी संदेशों पर चर्चा की गई और वे  इतने महत्वपूर्ण नहीं है , ऐसा निष्कर्ष अमेरिकी अधिकारियों ने निकाला। योशिकावा ने उस संदेश के अनुसार जापान के विदेश मंत्रालय को आवश्यक जानकारी चार से पांच बार भेजी। योशिकावा ने संदेश भेजा कि पर्ल हार्बर के उत्तर में कोई अमेरिकी विमान गश्त नहीं था। अमूमन यह संदेश संयुक्त राज्य के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन फिर से उस संदेश को नजरअंदाज कर दिया गया। जब योशिकावा  को जापान से आखिरी  रेडियो सिग्नल संदेश "द ईस्ट विंड रेन" मिला, तो उन्हें यकीन हो गया कि अब पर्ल हार्बर पर जापानी हमला होने वाला है । यह संदेसा मिलनेके बाद योशिकवा ने फुर्ती से उसकी जासूसी के सभी सबुत नष्ट  कर  दिए।  

   जैसा तय हुवा था 7 दिसंबर, 1941 को पर्ल हार्बर पर जापान ने  हमला किया। इस हमले में संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेना को भारी नुकसान सहना पड़ा । हमले के दिन ही अमेरिकी एफबीआई ने योशीकावा  को जासूस होने के संदेह में गिरफ्तार किया। जब उन्होंने उनके घर की तलाशी ली, तो उन्हें छोड़ना पड़ा ताकि उन्हें जासूसी के कोई सबूत न मिले। योशिकावा फिर जापान लौट आया, और 1949 में प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक जापान की ख़ुफ़िया एजेंसी की सेवा की। अगस्त 1945 में, जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया और विश्व युद्ध समाप्त हो गया। विश्वयुद्ध के बाद जापान पर कुछ वर्षों तक अमरीका की सत्ता थी । योशिकावा ने इसी साल शादी की और उनके दो बेटे हुवे।,  महायुद्ध के दौरान कारावास से बचने के लिए, वह अकेले ही संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए, वहा जाकर बौद्ध भिक्षु बन गए।  1952 में अमेरिकी सेना के जापान  से  लौटने के बाद याशिकावा जापान आ गया। चूंकि उनके पास नौकरी नहीं थी, इसलिए उन्होंने 1955 में एक छोटा व्यवसाय शुरू किया। उसी समय द्वितीय विश्व युद्ध और जापान पर हूवे  परमाणु बम हमलों के लिए योशिकावा जिम्मेदार है ऐसी सार्वजनिक धारणा लोगो की बन चुकी थी। परिणामस्वरूप, योशिकावा का कारोबार  बंद हो गया और वह भूख से मर रहा था। उसके हुवे, वह परेशानी में आगया। ऐसी परिस्थिति में उनकी पत्नी ने  एक बीमा एजेंट के रूप में कामकिया और घर चलाया । योशिकवा का कहना था कि "मुझसे कोई गलती नहीं हुई , मैंने वही किया जो मैंने वरिष्ठ अधिकारियो  की सलाह से किया। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, जापान सरकार ने जापान में युद्ध का विरोध किया। जापान की हुवी क्षति को देखते ,जापान में युद्ध को विरोध करनेवाला जापानी शासन स्थापित हुवा। इस नए जापानी सरकार ने योशिकावा  को कोईभी मानसम्मान नहीं दिया। न ही उनकी खबर ली। इस तरह के इस  उपेक्षित जासुज की 20 फरवरी, 1993 को मृत्यु हो गई।

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