यादें खगोल वैज्ञानिकों की-1 गॅलिलिओ / केपलर

   गॅलिलिओ गॅलिली  (Galileo galilei)

        लगभग 400 साल पहले की बात है।  इटली देश में अवकाश संशोधक् शास्त्रज्ञ  गॅलिलिओ गॅलिली इन्होंने दुर्बीण की खोज की और अवकाश को खंगलाना  शुरू कीया । जिस की वजह से आज अवकाश मनुष्य क मुट्ठी में आना शुरू हुआ है। 1609 साल में गैलीलियो ने लगाई हुए क्रांतिकारक घटनाओं को इस साल 400 वर्ष पूरे हो चुके है । इसीलिए हम ''विश्व आपका संशोधन के लिए'' इस घोषवाक्य के साथ वह अद्भुत घटना इस वर्ष मना रहे हैं।  हालही में भारत ने अवकाश में एक मंगलयान छोड़ा है। मंगल ,चंद्र ,अवकाश , ब्रम्हांड मे मौजूद अनेको ग्रहो और घटनाओ की जानकारी आज हमें घर बैठे मिल जाती है।  आज विज्ञान ने अवकाश संशोधन में इतनी प्रगति कर ली है , जिसका श्रेय गैलिलिओ जैसे शास्त्रज्ञों को जाता है।  अगर वे शुरुआत में मेहनत करके इतनी खोजबीन न करते तो शायद हम इतनी स्पेस सायंस में इतनी उचाई पर न पहुंचते।  या फिर पहुंचते पर देरसे पहुंचते। इस मुठ्ठी के आकाश के पीछे  अनेकों खगोलशास्त्रज्ञो की तपस्या छुपी  है।  उनकी वजह से
हमें इतना ज्ञान मिला है
Galileo galilei Astronomy mangal yan, avkash shastragya, binoculars, durbin
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       गैलीलियो का जन्म इटली में पैसा यहां 1564 में हुआ उनके पिताजी फ्लोरेंस घराने के थे । उन्हें संगीत और विद्वत्ता इन क्षेत्रों में मान्यता मिली हुई थी । गैलीलियो भी अति उत्तम ऑर्गन वादक थे पर गैलीलियो को प्रसिद्धि मिली वह उनके शास्त्रीय संशोधन के लिए । गैलीलियो का प्राथमिक शिक्षण पीसा में ही हुआ। उनकी पढ़ाई के लिए घर में ही शिक्षक रखा हुआ था। आगे चलकर उनका परिवार फ्लोरेंस को स्थलांतरित हुआ। वहां जाकर गैलीलियो का स्कूल में दाखिला कराया गया। माध्यमिक पढ़ाई के बाद उनके पिताजी ने उन्हें पीसा के यूनिवर्सिटी में वैद्यकीय डिग्री के लिए भेजा। पर गैलीलियो की रुचि गणित और पदार्थ विज्ञान में थी । फिजिक्स उन्हें अच्छा लगता था। उन्होंने वैद्यकीय पढ़ाई आधी अधूरी छोड़ दी और 1589 में गणित के प्राध्यापक बने । 1609 में गैलीलियो ने एक छोटी दूरबीन तैयार की उन्होंने उस दूरबीन को आकाश की तरफ मोड़ा और उसमें से देख कर उन्हें जो नजारे देखें उससे उनकी अवकाश संशोधन में रुचि बढ़ती गई।
     गैलीलियो ने जिस दूरबीन से अवकाश में खोज जी ग्रहों की खोज की उस दूर्बिन के शोध के पीछे एक किवदंती है उसे किवदंती नहीं कह सकते , वो सत्य घटना है। गॅलिलिओ एक कांचसामान की दुकान में गए थे। वहां रखे हुए कुछ कांच के लेंस को आखो को लगाकर इधर उधर देख रहे थे। मानो किसी बच्चे की तरह खेल खेल रहे हो।  दो अलग-अलग प्रकार के कांच के लेंस को  आमने सामने पकड़ कर उसमें से उन्होंने देखा तब उन्हें एक दूर की एक  बिल्डिंग पास आग आ गई है ऐसा प्रतीत हुआ। गॅलिलिओ बहोत खुश हुवे। वह काच उन्होंने खरीद लिए। संशोधक वृत्ति के गैलीलियो ने अपनी कल्पनाशक्ति का इस्तमाल करके एक दुर्बिन बनाई। उससे देर राततक वे आसमान में देखते तारो सितारों को निहारते रहते और अनुमान व टिपणी लिखते। धीरे धीरे उन्होंने अलग अलग कच के टुकड़ो का प्रयोग उस दुर्बिन में शुरू किया।  और वे आकाश के और नजदीक पहुंचते गए। उनका अवकाश, ब्रम्हांड, तारे ,सितारे ,सूरज ,चाँद का ज्ञान बढ़ता गया। जुपिटर ग्रह के आगे पीछे घूमने वाले चार चांद उन्हें मिले चंद्र के ऊपर के और खड़े सूरज पर के दाग और मंगल के ऊपर के गोल चक्र देख सकें आगे चलकर उन्हें यकीनन कहते आया कि पृथ्वी और अन्य ग्रह यहां सूरज की कक्षा में घूमते हैं ।

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      गॅलिलिओ की ये ज्ञानी उड़ान उस जमाने के पाखंडी धर्माधिकारीयो को रास न आई। गैलीलियो का यह संशोधन ज्ञान पुराणी संकल्पनावो को झूठा सिद्ध करना धर्मपण्डितों को अच्छा  नहीं लगता था।  क्योंकि अंधश्रद्धाओके कीचड़ में फंसे हुए सामान्य लोगों को उन्हें काबू में जो रखना था। तभी उनका स्थान आंचल रह सकता था।  इसलिए वे गैलीलियो के खिलाफ थे। उनका द्वेष करने लगे थे।   गॅलिलिओ का संशोधन अपने अभ्यास के जरिए अवकाश में से अवकाश के रहस्य उजागर करता था, अनेकों रहस्यमई बातें बताता था।  उसकी वजह से धर्म ग्रंथों में लिखे हुए पृथ्वीमध्य  यह संकल्पना टूट कर चूर-चूर हो गई थी। पृथ्वीमध्य मतलब पूरे विश्वका पूरे ब्रह्मांड का पृथ्वी यही एक मध्य है, ऐसा क्रिश्चियन धरमियो का मानना था। क्योंकि धर्म ग्रंथों में ऐसा ही लिखा था।जो भी उससे असहमति दर्शाता, या जो भी उसके अलावा कोई अन्य विचार व्यक्त करता, तो उसे पवित्र धर्मग्रंथ का अपमान करना माना जाता था। पृथ्वी यह ग्रह अवकाश में मौजूद अन्य ग्रहों के समान सूरज के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता है यह बात उस ज़माने के विद्वान लोग सटीकता से बताने लगे थे।

पहले 1543 वी शताब्दी में कन्फ्यूशियस ने लिखे हुए इस विचार के विरुद्ध पुस्तक पर चर्च ने बंदी लाकर उसे बहिष्कृत किया हुआ था। इसी तरह से धर्म ग्रंथों के खिलाफ मत व्यक्त करके जिआर्दानों ब्रूनो इस इटलीके बागी खगोलशास्त्रज्ञ की बली चढ गई थी।  धर्मपंडितों ने उसे जिंदा जलाने का फरमान निकाला था। उस जमाने के विश्व की पृथ्वीमध्य संकल्पना को तोड़ने वाले निकोलस कोपरनिकस बहुत हाल किए गए , खुद गॅलिलिओका मुंह बंद करने का प्रयास किया गया। गैलीलियो के विचारों ने उसे मुसीबत में डाल रखा था। उस जमाने में चर्च धर्मसभा सबसे शक्तिशाली मानी जाती थी। गैलीलियो कॉपरनिकस के विचारो से सहमत थे फिर भी उन्हें वे उन विचारों से सहमत नहीं है ऐसा जाहिर करना पड़ता था। फिर भी उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर कॉपरनिकस के विचारों को मान लिया था। इतनी उलझनों के बावजूद गैलीलियो ने अपना संशोधन जारी रखा। जहां चाह वहां रस्ता इस कहावत के अनुसार  गॅलिलिओ एक हमराह मिल गया। वे थे जर्मनी में रहने वाले खगोल वैज्ञानिक जोहानेस केप्लर।

      जोहनेस केप्लर  के साथ उन्होंने संपर्क किया। उनका सम्भाषण गुप्त भाषा में होता था । क्योकि उनपर शक करने वाले राजनैतिक अधिकारी और धर्म पंडितों की उनपर और उनके पत्रव्यवहार पर कड़ी नजर थी। गॅलिलिओ उन्हें कंफ्यूज करते थे।  गॅलिलिओ का पत्र व्यवहार करने का तरीका अलग था। उनके पत्र में कोई बात सीधी लिखी हुई नहीं रहती थी।  किसी बात को अलग ही तरीके से तोड़ मरोड़ के , कथा में कविता में या गुत्थी  में लिखा हुआ रहता था। वह बात सिर्फ केपलर  ही समझ पाते थे।  जैसे कि अगर गॅलिलिओ को बताना है की '"चंद्रग्रहण के वक्त चाँद , पृथ्वी और सूरज एक सीधी रेखा में आते है", इस सन्देश की जगह " बाप बेटा और भाई इस इस रोज को एक ही बेंच पर बैठे थे। को वे कुछ इस तरह का लिखा  होता था। केप्लर ऐसे सन्देश समझ जाते थे।  कभी-कभी लंबे लंबे वाक्यों  में अलग अलग शब्द आगे पीछे करके ऊपर नीचे करके वहां संदेश पहुंचाते थे। और उसी तरह से पत्र का उत्तर देते थे। अंग्रेजी में उसे 'एनाग्रम' कहते हैं।
  
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     इसी प्रकार अपने अपनी दूरबीन से देखी हुई मंगल विषयक बातें ,शुक्र चंद्र की कलाएं इसके शोध निबंध आदि गॅलिलिओने केप्लर को बताये।  अपने गणिति प्रमेयो व् सूत्रों की मदद से  बोहोत से  वैज्ञानिक सत्य का तथ्य केप्लर ने निकाला था। जांचा था परखा था।  और एक ठोस अनुमान लगाता था। केपलर  और गैलीलियो तबकी राजकीय बंदी और प्रकृति अस्वस्थता की वजह से कभी  मिल नहीं पाए थे।

    गैलीलियो ने और अनेक खोजे की ।उन खोजों में से एक खोज ऐसी थी कि वजन में फर्क होने के बावजूद ऊपर से नीचे फेंकी गई वस्तुएं यह समान गति से नीचे आती है । आगे चलकर उनकी दृष्टि कम हो गई , फिर भी वे काम करते रहे और 77 वर्षों तक जिए। 1642 में उनका निधन हुआ।
    1992 साल में यानी लगभग 350 वर्ष के बाद कैथोलिक धर्मपीठ  के आचार्य स्वर्गीय दूसरे जॉन पौल इन्होंने गैलीलियो के ऊपर हुवे अत्याचारो  की जाहिर सरेआम माफ़ी मांगी और गलती कबूल की।

  जोहानेस केपलर  (johannes kepler)

           जोहानेस केप्लर यह एक जर्मन खगोल शास्त्रज्ञ थे। धर्म से वे प्रोटेस्टेंट क्रिस्ती थे और कॅथलिक पंथीय राजा के दरबार में गणिती इस पद पर नौकरी करते थे। वे  धार्मिक वृत्ति के थे धर्म से उनका लगाव था पर ज्योतिष शास्त्र पर उनका जरा भी विश्वास नहीं था।  फल ज्योतिष के ऊपर वे थे टीका करते थे। टीका टिप्पणी करते थे फिर भी वे हर साल दिन दर्शिका/ पंचांग प्रसिद्ध करते थे। और अपने अध्ययन से मिली हुई जानकारी के द्वारा सर्व सामान्य लोगों को भविष्य स्थिति के विषय में शास्त्र पूर्ण सलाह देते थे।  यह उद्योग वे  केवल पेट भरने के लिए करते थे। क्योंकि राजगनीति होकर भी उनको मिलने वाला वेतन गुजारे के लिए पर्याप्त नहीं था। उनके। उनकी पत्रिका/पंचांग के रुडल्फियन कॉलम में दवाई घरेलू उपचार की जानकारी होती थी।  साथ ही  उस जमाने के राज्य कर्ताओं के विषय में वे लिखते थे उनके ऊपर टिका करना, उनकी विडंबना करना, समाज व्यवस्था के बारे में बताना, समाज में मौजूद धर्मव्यवस्था के बारे में टीका टिप्पणी करना यह सब उनके चार्ट में शामिल होता था।  उनके चार्ट बहुत ही लोकप्रिय हो गए थे। चंद्रमुहीम  के ऊपर उन्होंने एक विज्ञान कथा थी लिखकर तत्कालीन राज्य व्यवस्था की खाल निकाली थी।
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   उनके इस स्पष्ट और आधुनिक विचार की वजह से वह पाखंडी  धर्माधिकारी योग के गुस्से के शिकार हो गए थे। उन्होंने केप्लर को के ऊपर बहिष्कार डाला था।  इतना ही नहीं तभी के राज्यकर्ताओं ने बदले की भावना से केप्लर के की बूढ़ी मां को जादू टोना करने वाली डायन करार देकर भरे बाजार में जिंदा जलाने की कोशिश भी की थी ; परंतु उसके चहेते योहनस ने अपना ज्ञान कौशल्या लगाकर उसकी माता को उनके चंगुल से छुड़ाया था। उसके लिए उसे अपने प्रतिष्ठित पद राजगणिति का त्याग भी करना पड़ा था। जोहानेस  केप्लर ने लिखे हुए सोम्नियम इस  कादंबरी /उपन्यास में प्रथम चांद बरसात का जिक्र दिखता है।


 

 

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