यादें खगोल वैज्ञानिकों की -3 स्टीफन हॉकिंग /डॉ अब्दुल कलाम

स्टीफन हॉकिंग (Stephen hawking)

     स्टीफन हॉकिंग यह इंग्लैंड में के एक बड़े खगोल वैज्ञानिक थे।  वे शरीर से अपंग / दिव्यांग  थे। 'अमियो ट्रॉफिक लैटरल स्क्लेरोसिस' इस अजीब  विचित्र बीमारी से उनका शरीर अपंग बना हुआ था। उनके शरीर के कई हिस्से लकवे से जाया हो गए थे। फिर भी ध्वनि संश्लेषण यंत्र की सहायता से वे और लोगों के साथ संवाद करते थे। विश्व उत्पत्ति और निर्मिति शास्त्र के गाढ़े पंडित रहे हुए यहां इंग्लिश वैज्ञानिक संशोधनकर्ता एक महान हस्ती थी।  काल के इतिहास के ऊपर लिखा हुआ 'ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम ' यह उनका ग्रंथ बहुत ही प्रसिद्ध हुआ।  इस ग्रंथ के दुनिया के 40 भाषाओं में भाषांतर हुए।
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        स्टीफन हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी 1942  को ऑक्सफोर्ड में इसाबेल एलेन हॉकिंग के घरमें हुवा था। हॉकिंग के पिता नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल रिसर्च में अधिकारीक पद पर थे।
साल  १९९८ में प्रकाशित उनकी किताब A brief History of Time प्रकाशित हुवी थी। इस किताब में महाविस्फोट का सिद्धांत (Big Bang Theory) और ब्लैक होल के बारे में लिखा है। हॉकिंग ने सापेक्षता (रिलेटिविटी) और ब्लैक होल को समझने में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी खोज पूरी दुनिया के काम आई।

 स्टीफन हॉकिंग की खोजो मे से कुछ महत्वपूर्ण खोजे  
    सिंगुलेरिटी का सिद्धांत (Theory of Singularity) -1970
   ब्लैक होल का सिद्धांत
   कॉस्मिक इन्फ्लेशन थेअरी  
 
             जो मनुष्य खुद के व्यंग खुद के व्यंग पर विनोद करता हो वह बड़े दिल का होता है। कुछ वर्ष पहले हार्किंग मुंबई दौरे पर आए थे तब प्रसिद्ध व्यंग्य चित्रकार आर.के. लक्ष्मण इन्होंने उनके आड़े तिरछे शरीर का अफलातून व्यंग चित्र बनाया था। यह देख कर उस दिलदार वैज्ञानिक महाशयने उनको अच्छी दाद दी थी और तारीफ भी की थी।  कुदरत ने हॉकिंग के साथ किए हुए घर पर कहर का  हॉकिंग ने बड़ी हिम्मत से सामना किया।   इतनी  में वे ऐसा काम करगए की सारी  दुनिया को उन्हें मानना पड़ा।  डॉक्टर्स ने उन्हें कहा था कि वे कुछ ही साल जिंदा रह पाएंगे। उन्होंने हार ना मानते हुए लगभग __साल की उम्र जी। अपनी ज़िद से मौत को आगे भगाते रहे। स्टीफन हॉकिंग मतलब ज्वलंत इच्छाशक्ति का ज़िद का दूसरा नाम कह सकते हैं।
 स्टीफन हॉकिंग कहते है अगर मैं संशोधक/ वैज्ञानिक नहीं हुआ रहता तो जरूर पॉलीटिशियन होता।  पर वह काम उन्होंने टोनी ब्लेयर पर छोड़ दिया ऐसा वे मजाक से कहते हैं। टोनी ब्लेयर इंग्लैंड के पंतप्रधान रह चुके हैं  स्टीफन हॉकिंग जानते थे की उनका कार्य पंतप्रधान किस से भी ऊपर ज्यादा उपयुक्त और टिका हुआ है।
 स्टीफन हॉकिंग ने कहा था
" मुझे हमेशा यह गर्व है कि मैंने ब्रह्माण्ड को जानने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, मैंने विज्ञान क्षेत्र में कई नए खोज की और इसीलिए लोग मेरीप्रशंसा करते हैं।  "

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम (Dr. A.P.J Abdul Kalam )

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           भारत के माजी राष्ट्रपती और प्रख्यात शास्त्रज्ञ डॉ एपीजे अब्दुल कलाम इन्हें बच्चों की के लिए बहुत लगाव था।  वह बच्चों के साथ घुल मिल कर रहते थे।  उनको अच्छी अच्छी बातें बताते थे।  एक बार वे किसी एक दिव्यांगो की संस्था में आस्था से भेट देने के लिए गए थे। वहां के दिव्यांग बच्चे बच्चियां भारी धातुओं से बने हुए कैलिपर्स यानि कुबढ़िया लेकर चलते थे। वह कुबडिया लोहे से बानी थी सो उनका वजन भी ज्यादा था।   भारी बजन के केपिलर की वजह से उन बच्चों को चलने में परेशानी होती थी। वे धीरे धीरे चलते थे। उन्हें चलने में तकलीफ होती थी।  यह देख कर कलाम साहब का दिल भर आया।
        लोग उन्हें क्षेपणास्त्र पुरुष कहते हैं क्योंकि उन्होंने अपने देश के लिए उपयुक्त अग्निबाण तैयार किए हैं। इस अग्निबाण के लिए उन्होंने वजन से हल्का पर मजबूत ऐसा सीसी कंपोजिट नाम का एक धातु  ढूंढ निकाला था।  उन्होंने उसी पदार्थ को इस्तेमाल करके दिव्यांग बच्चों के लिए केपिलर्स तैयार करने का हुक्म दिया। उस हलके पदार्थ से बनी हुवी हल्की-फुल्की कपिलर्स पहनकर वे बेचारे बालक हंसते खेलते घूमने लगे।
 डॉ कलाम ने जब वह दृश्य देखा तब उनकी आंखों में आंसू आ गए थे।

डॉ. जयंत नारलीकर (Jayant Narlikar)

 पुणे में आयुका का नाम की खगोल विज्ञान पर अध्ययन करने वाली संस्था है। आयुका मतलब 'इंटरव्यूइंटर यूनिवर्सिटी सेंटर ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स ' डॉक्टर जयंत नारलीकर यह जागतिक ख्याती के शास्त्रज्ञ वैज्ञानिक इस संस्था के संस्थापक है। आयुका की इमारत खड़ी हो रही थी तभी की बात है। एक दिन बांधकाम करने वाले मजदूरों की और कांट्रेक्टर के झगड़े हो गए। कुछ बात हुई होगी ,मजदूरों ने काम करना बंद कर दिया।  यह बात पता चलते ही डॉक्टर नारलीकर उस जगह पहुंचे।  हाथ में फावड़ा घमेला लेकर वे खुद ही काम पर लग गए।  उनकी यह कृती देखकर वहां उपस्थित और कोट्रैक्टर और मजदूरोने  लज्जा से सिर झुका दिया फिर जल्द ही बिल्डिंग बांधने का काम शुरू हुवा।
      इस संस्था के परिसर में आर्यभट्ट, न्यूटन, गैलीलियो, आइंस्टाइन इन जैसे खगोल वैज्ञानिक के बड़े-बड़े पुतले हमें दिखते हैं। उन पुतलो का आकार इतना बड़ा क्यों यह प्रश्न जब हमें गिरता है तब , ऋषि तुल्य नारलीकर सर स्मित हास्य करते हुए विनम्रता से बताते हैं ; thay were larger than life इसीलिए।
यह वैज्ञानिक धूप बहुत ही बड़े विभूति थे। सामान्य इंसान से उनका बड़प्पन और कृतित्व उठकर दिखना चाहिए , यह उस बड़े पुतले बनाने के पीछे मनीषा थी।  उन्होंने विज्ञानं को आगे ले जाने में जो योगदान किया है ,उसके लिये उनकी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए यह ऊंचाई बहुत कम है।  ऐसा जयंत नार्लीकर का कहना था।

     वहां के न्यूटन के पुतले के पास सफरचंद का एक पेड़ है ,इस पेड़ को से लटके हुए सेब दिखते हैं।  खुद नार्लीकर ने उस पेड़ का कलम इंग्लैंड से लाया था।  यह वही पेड़ है जिस पेड़ के नीचे न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण का साक्षात्कार हुआ था।  नारलीकर सर ने बड़ी मेहनत से वह कलम पुणे में लाकर उसे बढ़ाया। बड़ा किया।   एक महान वैज्ञानिक के प्रति आदर व्यक्त कर के, उसका स्मारक निर्माण करने के लिए करने की यह कितनी अपूर्व कल्पना है।
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