मदर तेरेसा एक महान महिला और एक रोमन कैथलीक नन थी। जिन्होंने मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की। उनको अपने अद्भुत और महान कार्यों के लिये 1979 में नोबल पुरस्कार मिला था। मदर टेरेसा की उदारता, अच्छे कार्यों और व्यक्तिमत्व था। वह एक ऐसी महान महिला थी जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीब और जरुरतमंद लोगों की मदद में लगा दिया। नम्रता , प्रेम , सौजन्यशीलता मधुर भाषा माता का ह्रदय और अपार त्याग इसकी वह मूर्ति मंत्र प्रतीक थी। भारतीय समाज के लिए उनका किया हुवा कार्य अलौकिक है। अपने महान कार्यों के लिये जल्द ही वो गरीबों के बीच में मसीहा के रुप में प्रसिद्ध हो गयीं।
मदर तेरेसा इन का जन्म युगोस्लाविया के स्कोप्जे इस गांव में 26 अगस्त 1910 को एक अल्बनियाई परिवार में हुआ। एग्नेस गोंजा बिजाजीजु उन का मूल नाम था। उनके पिताजी का नाम निकोला बोजायु था। किराना माल का दुकान था। स्थानिक स्कूल में पढ़ते वक्त उम्र के 12 वें वर्ष में ही वह नन बन गई। रोमन कैथोलिक चर्च के नंद सिस्टर के सेवा में प्रवेश लिया। सैनिक स्कूल में पढ़ते वक्त सी उम्र के 12 वर्ष में वह नन बन गई। उस वक्त उनके सेवा धर्म से उनका नाम मदर टेरेसा यह नाम मिला।
मदर तेरेसा की जीवनी
1929 साल में वह भारत में आ गई। मानव सेवा का उदात्त ध्येय से उनका मित्र संघ प्रेरित हुआ था। कोलकाता के सेंट मैरी कॉन्वेंट हाई स्कूल में उनको अध्यापिका का काम दिया गया। एक दिन उनको लगा कि अपना कार्य सही मायने में गरीब उपेक्षित ऐसे शहरी लोगों में होना चाहिए। उन्होंने रोमन कैथोलिक संघ के अधिकारियों को विनती करके वहा जाने की इजाजत मांगी। 2 वर्ष के बाद उनकी विनती स्वीकार किया गया।उसके बाद उन्होंने नौकरी के साथ-साथ नन के लिबास का भी त्याग किया। और भारतीय साड़ी पहनना आरंभ किया। तेरेसा के पास ज्यादा पैसे नहीं थे। फिर भी उन्होंने कोलकाता की गंदी बस्तियों में काम करने की शुरुआत की। इस जगह पर उन्होंने पांच निराश्रित निराधार बच्चे मिले उन बच्चों को उनके सहेली के घर रख के वहां अधिक काम करने लगी। निराश्रित बच्चो की संख्या दिन ब दिन बढ़ती गई। उस वक्त उन्हें सेंट मेरी स्कूल के बच्चों ने और शिक्षकों ने मदद की। भारतीय जनता की गरीबी देखकर व उनकी दयनीय अवस्था देखकर उन्होंने युगोस्लाविया की जनता को मदद करने का आवाहन किया। मदद की बाढ़ आई। उनका दिल सेवा भावना से भर गया। वह देश सेवा करने लगी। आगे रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता देकर धार्मिक सभा समाज स्थापन करने की इजाजत दी। इस पद्धति को दया बुद्धि से कार्य करना ऐसे भी कह सकते हैं।
मदर तेरेसा का कार्य
कोलकाता में निर्मल ह्रदय यह संस्था कि उन्होंने स्थापना की। अनेक बेवारस निराधार बच्चों को अपंगों को और निराधार और वृद्धो को आधार मिला। वह गरीब जनता जनता की माता बन गई। भारत के अनेक नेताओं ने नेताओं को शांति व सेवा कार्य का आदर्श उन्होंने बढ़ा दिया। अपने सेवा कार्य से वह पूरे विश्व की अनधिकृत एक दाना भी सीखता सम्राट बन गई।
तेरेसा ने उसके बाद एक बालबच्चों की और मरीजों की देखभाल करने वाला आश्रम निकाला। कुष्ठ रोगियों के लिए शांति नगर नाम की नगर बसाया। वह कहती थी गरीबों को और मरीजों को सिर्फ दुनिया उन्हें अपनाएं बस इतनी ही उम्मीद रहती है। हम दुनिया को अनचाहे हो गए हैं ऐसा लगना यही महा भयंकर रोग है बीमारी है और वह किसी के भी हिस्से में आ सकता है। गरीब में से गरीब बच्चों को प्यार से गले लगाया उनकी मानव सेवा का सुगंध पूरे विश्व में फैला। मदर टेरेसा ने अब तक सबसे ज्यादा स्कूल , अनाथालय और मरीजों के लिए अस्पताल व आश्रम की शुरुआत की थी। उनका यह कार्य भारत की तरह अफ्रीका, अमेरिका ,यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और एशिया के अनेक प्रदेशों में पहुंचा है। 1963 में उन्हें उन्हें उन्होंने पुरुषों के लिए मिशनरी ब्रदर्स ऑफ चैरिटी इस नाम की एक समूह की स्थापना की। तेरेसा की देखभाल से अच्छे हुए मरीजों को उसके बाद एक विशेष जगह भेजेते थे। उन्हें उपयुक्त और उत्पादक काम कर-कर के जीने का अवसर दिया जाता था। यह काम सब पर चलता था। उनकी मानव सेवा का सुगंध पूरी दुनिया में फैला। अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें दिए गए।
मदर तेरेसा को मिले पुरस्कार
1962 साल में उन्हें पद्मश्री मिला।
1980 साल में उन्हें भारतरत्न मिला।
1971 को पोपा जॉन पॉल XXIII इनका शांति पदक होने दिया गया।
1965 साल को मैग्सेसे पारितोषिक दिया गया।
1993 ग्रँड ऑर्डर ऑफ़ क्वीन जेलिना
1993 साल को राजीव गांधी सद्भावना अवार्ड से सम्मानित किया गया।
जागतिक शांतता के पुरस्कर्ता पंडित जवाहरलाल नेहरू का शांति पदक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें 1972 साल को दिया गया।
1969 साल को उन्हें मानव सेवा कार्य तथा शांति का नोबेल प्राइज मिला। वह उन्होंने दुनिया के सब पददलित दो के मार्फत स्वीकारा ।
इनके अलावा उन्हें लगभग १५ भारतीय एवं विदेशी पुरस्कार मिले।
मदर तेरेसा का व्यक्तिमत्व
मदर तेरेसा के व्यक्तिमत्व में नम्रता और उतनी ही प्रेम ममता इनका मिलाप मिलता है। ऐसा उन्हें मिले हुए लोग बताते हैं। वह दिखने में सौम्य छोटी है; पर उनके अशक्त वाले शरीर में उसी जगह पर रहने वाली प्रेम शक्ति आनंद और सेवा भाव इनका तेज सहज पता चलता था। नम्रता, सौजन्यशीलता, मधुर भाषा, माता का ह्रदय, और अपार त्याग का वह मूर्ति मंत्र प्रतीक थी। उदाहरण थी।
मृत्यु
मदर टेरेसा को कई सालो से दिल व किडनी की बीमारी थी। उन्हें पहला दिल का दौरा १९८३ में रोम में आया था। 1990 में उन्हें बड़े एक बड़े बीमारी ने घेर लिया। तब से उनका भागमभाग वाला काम बंद हो गया। हिंदुस्तान के हजारों लाखों गरीब अपंग बीमार निराधार दुर्बल उपस मार्ग रास्ता भूखे नंगे लोगों की बच्चों की स्त्रियों की तन मन धन से सेवा करते हुवे भारत में ही 5 सितंबर 1997 को उनका निधन हुआ।
मदर तेरेसा के अनमोल विचार
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यदि आप प्रेम संदेश सु नना चाहते हैं तो पहले उसे खुद भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।
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अकेलापन ही सबसे भयानक ग़रीबी है।
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हम सभी महान कार्य नहीं कर सकते लेकिन हम कार्यों को प्रेम से कर सकते हैं।
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भयानक गरीबी क्या होसकती है , अकेले अछूत रहना।
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यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दुसरे के हैं.
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आज के समाज की सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या लांछन नहीं है, बल्कि अवांछित रहने की भावना है।
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गरीबों को और मरीजों को सिर्फ दुनिया उन्हें अपनाएं बस इतनी ही उम्मीद रहती है।
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दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है।
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छोटी छोटी चीजों के प्रति वफादार रहिये , क्युकी यही चीजे बादमे आपको शक्ति प्रदान करती है।
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अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का पुल है।
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सादगी से जियें ताकि दूसरे भी जी सकें।
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यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो कम से कम एक को ही करवाये ।
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हम सभी ईश्वर के हाथ में एक कलम के सामान है।
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यह महत्वपूर्ण नहीं है आपने किसको कितना दिया, बल्कि महत्वपूर्ण ये है की देते समय आपने कितने प्रेम से दिया।
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खूबसूरत लोग हमेशा ही अच्छे नहीं होते। लेकिन अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं।
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जिस व्यक्ति को कोई चाहने वाला न हो,
कोई ख्याल रखने वाला न हो, जिसे हर कोई भूल चुका हो, मेरे विचार से वह
किसी ऐसे व्यक्ति की तुलना में जिसके पास कुछ खाने को न हो से कहीं बड़ी
भूख, कहीं बड़ी गरीबी से ग्रस्त है।
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प्रेम हर मौसम में होने वाला फल है, और हर व्यक्ति के पहुंच के अन्दर होता है।
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कुछ लोग आपकी ज़िन्दगी में आशीर्वाद की तरह होते हैं तो कुछ लोग एक सबक की तरह।
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हम दुनिया को अनचाहे हो गए हैं ऐसा लगना यही महा भयंकर रोग है , बीमारी है। और यह किसी के भी हिस्से में आ सकता है।
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मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित रहें। क्या आप अपने पड़ोसी को जानते हैं?
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यदि हमारे बीच शांति की कमी है तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित हैं।
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अपने क़रीबी लोगों की देखभाल कर आप प्रेम की अनुभूति कर सकते हैं।
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प्रेम की भूख को मिटाना, रोटी की भूख मिटाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है।
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प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है खोने के सामान है।
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क्ट्या आप जानते है की आपका पड़ोसी कोन है ?
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यदि आप सौ लोगो को नहीं खिला सकते तो सिर्फ एक को ही खिलाइए ।
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