गोपाल की कहाणी

      गोपाल एक छोटा लडका था । वह एक छोटेसे घरमें अपनी माँ के साथ रहता था । उसके पिताजी चल बसे थे । माँ पढी लिखी तो थी नहीं । वह दो चार मकानों में लोगों के बर्तन माँजना , कपडे उतार जब धोना , झाडूपोछा करना ऐसे काम करती थी । उसे जो कुछ भी थोडासा पैसा मिलता उसमें दोनों का पेट पलता था । उसकी भगवान श्रीकृष्ण पर बडी श्रद्धा थी । उनके घर में मुरलीधर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति थी । वह हर रोज उसकी पूजा करती थी । अपने  बेटे का नाम भी उसने भगवान श्रीकृष्ण का नाम गोपाल रखा था ।

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छोटे गोपाल से वह श्रीकृष्ण की प्रार्थना करवाती थी । उसकी कथाएँ गोपाल को सुनाती थी । काम के लिए बाहर जाते समय वह गोपालसे कहती , " तू इधर उधर मत जा । मेरे आनेतक भगवान कृष्ण तुम्हारी रक्षा करेंगे । डरना मत । " छोटा गोपाल अकेला ही घरमें खेलता रहता था । गोपाल बडा होने लगा । अब उसे शिक्षाके लिए पाठशाला में भरती करना जरूरी था । उनके छोटेसे गाँव में पाठशाला नहीं थी । गाँव के बच्चे खेती बाडी में मदद करते थे । अपने ही घरका व्यवसाय घरके लोगोंसे सीखते थे । थोडी दूर के गाँव में पाठशाला थी । लेकिन वहाँ तक जाने का रास्ता जंगलसें गुजरता था । माँ ने गोपालको वही भेजने का निर्णय लिया । वह गोपालको लेकर पाठशाला गई ।

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    पाठशाला के प्रमुख आचार्य जी बडे हसमुख , स्नेहशील और आदरनीय थे । उन्होंने छोटे गोपाल को पाठशालामें भरती कर लिया । पाठशालामे और भी विद्यार्थी थे । गोपाल सबसे छोटा था । सभी विद्यार्थी आचार्यजी का गुरुजी कहते थे । गोपाल होशियार था । शांत और सस्वभावी था । अपने गुरुजीसे उस । बहुत लगाव , आदर था । उसको पाठशाला अच्छी लगी थी । वह आनंदस से पाठशाला जाने को तय्यार रहता था । पाठशाला में इतनी दूर उसे पहँचाने वापस ले जाने के लिए माँ आती थी । एक सप्ताह ऐसे ही बीत गया एक दिन रात को माँ ने कहा , " देख गोपाल , अब पाठशाला का रास्ता जो अच्छी तरह से मालूम हो गया है । कल से तू अकेले जाया कर । काम छोड़कर मैं रोज नहीं आ सकती । अगर लोगों ने मुझे काम से निकाल दिया तो  बडी मुसिबत आ जाएगी । गोपाल समझदार था । वह बोला , " माँ वह तो ठीक है । मगर मुझे जंगल के रास्ते से बहुत डर लगता है । मैं वहाँ से अकेले कैसे जाऊँ ? " माँ ने कुछ क्षण विचार किया और बोली , " अरे डरना मत । जंगल में एक दादा रहता है । डर लगने पर उसे पुकारना । वह आकर तुम्हारा साथ देगा । गोपालने पुछा , “ कौनसा दादा ? मैंने अब तक कभी उसे देखा नहीं " माँ ने कृष्ण की मुर्ती की ओर उंगली उठाते कहा , " देख । वैसा दिखता है वह । तू उसे पहचान लेगा । अब भगवान की प्रार्थना कर और सो जा । चिंता मत कर ।
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        " दूसरे दिन सुबह उठकर , नहा धो कर गोपाल पाठशाला की ओर चल पडा । माँ भगवान के सामने हाथ जोडकर बोली , " हे भगवान मेरे गोपाल की सहायता करना । " गोपाल चलते चलते जंगल में पहुँचा । शुरू में उसे कोई डर नहीं लगा । पंछी , पेड , झरने देखते देखते रास्ता कट रहा था । मगर जैसे ही घना जंगल शुरू हआ तब वह डरने लगा । एक बड़े से पेडके निचे खडा रहकर वह इधर उधर देखने लगा । उसने जोर से पुकारा , “ दादा ओ दादा । मुझे डर लग रहा है । जरा जल्दी आ जाओ ना । " उस पेड के पिछेसे गौओं के गले में होनेवाली घंटियोंकी आवाज सुनाई दी । मुरली की आवाज आई । दादा की आवाज आई । “ आया गोपाल , डरो मत । और दादा उसके सामने आकर खडा हुआ । गोपाल देखते ही रह गया । दादा बोला , “ चलो , मैं तुम्हें जंगल के आखिरी छोर तक ले चलता हूँ । जैसे ही गाँव का रास्ता शुरू हो जाए ; तुम अकेले चले जाना । मैं इस जंगल से बाहर नहीं जाता । " गोपाल उसके साथ चल पड़ा । दोपहर को आते वक्त फिर दादाने उसका साथ दिया । घर आकर गोपालने दादा के बारे में माँ से सबकुछ बता दिया । धोती और कुर्ता पहना हआ . सिर पर पगडी , कॅधे पर कंबल और हाथ में लाठी लेकर बडी निर्भयतासे जंगलेमें गौऐं चरानेवाला दादा उसे बहुत

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अच्छा लगा । माँ ने सोचा होगा कोई चरवाहा । अब हर रोज की यही बात हो गई । माँ की चिंता दूर हो गई । कुछ  दिन ऐसेही गुजर गए । एक दिन गुरुजी ने सभी विद्यार्थीओ से कहा " कल हम पाठशालामें सहभोजन करेंगे । दाल , चावल , सब्जी , कुछ ना कुछ घर से लेकर आओ । यहाँ हम खिचडी पकाएगें । सब मिलजुलकर काम करेंगे । "

 गोपाल घर लौटा । शामको जब माँ काम से वापर आई तब उसने माँ से सहभोजन के बारे में बता दिया और पूछा , “ माँ तुम मुझे क्या दोगी ? " माँ चूप हो गई । थोडी देर सोचकर बोली , “ अरे तू अपने दादासे कुछ माँग ले । उसके पास गौएँ है । वह जंगल में घुमता है । वह दूध , फल कुछ ना कुछ दे सकेगा । " गोपाल को भी यह बात पसंद आई । दूसरे दिन जब वह दादा से मिला तब उसने दादा को सहभोजन के बारे में सबकुछ बता दिया । माँ ने जो कुछ भी कहा वह भी बताया और बोला , " दादा , तुम मुझे कुछ दे सकोगे ना ? नहीं तो सभी दोस्त मुझपर हसेंगे। दादा हसकर बोला , " अरे छोटू जरूर दूँगा । तुम यहाँ ठहरो । मैं अभी लेकर आता हू  । दादा जंगल में गया । थोड़ी ही देर में वापस आया । उसके हाथ में छोटा सा मटका था । गोपाल की हाथ में मटका थामकर वह बोला । इसमें दही हैं । अच्छा मीठा है । यह ले जाओ । सबको थोडा थोडा बाट दो " हाथ में मटका सँभालकर गोपाल खुशीसे पाठशाला पहँचा ।



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वहा सभी विद्यार्थी कुछ ना कुछ लेकर आए थे । गोपाल को देखते  कछ बड़े विद्यार्थी बोले , " आओ छोटू ! क्या लाए हो ? " " दही लेकर आया । " गोपाल बोला । गुरुजी हँस कर बोले , " अच्छा , ठीक है । वहाँ जरा बाजू में रख दो । गुरुजीने काम का बटवारा किया । सभी काम में जुड़ गए । खिचडी बनाई । रायता बनाया । सभी भोजन करने बैठे । गुरुजीने गोपाल से कहा , " अरे गोपाल दही का मटका लेकर आओ । दे दो , मैं सब को परोसता हूं। " गुरुजीने सबकी थाली में थोडा थोडा दही परोसा । उनको लगा की मटके में से दही खत्म ही नहीं हो रहा है । जैसे जैसे वे परोसते मटका फिर से भर जाता था । वे देखते ही रह गए । कुछ बोले नहीं । सब का भोजन हो गया । दही अत्यंत स्वादिष्ट था । दो तीन बार थोडा थोडा परोसा गया । सब कुछ समेटकर सारे विद्यार्थी अपने अपने घर जाने निकले । गुरुजीने गोपाल को और दो तीन बडे विद्यार्थीओं को रुकवा लिया । गुरुजी ने गोपालसे पूछा , “ गोपाल , यह दही का मटका कहाँ से ले आए ? " गोपालने उसका जंगलका दादा , दही का मटका इसके बारे में सबकुछ बता दिया । “ हमे उस दादा से मिलना है । मिलवाओगे ? ' गुरुजी ने पूछा । गोपाल खुशीसे बोला , “ चलो मेरे साथ । वह तो जंगल में ही रहता है । " सभी गोपाल के साथ निकल पडे ।

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       जंगल में पहुँचते ही गोपालने रोज का तरह दादा को पुकारा । लेकीन ना दादा की आहट सुनाई दी , ना मुरली आवाज । गोपाल नाराज हआ । वह बोला , “ दादा अगर तुम नहा आए तो ये सब मुझे झठा कहेंगे । " इतने में पेड के पत्तो की मर्मर सुनाई दी और का आवाज आई , “ गोपाल आज तो तुम्हारे साथ बहुत सारे लोग है । अब मैं नहीं आऊँगा । " गुरुजा समझ गए । आवाज की ओर मुडकर , हाथ जोडकर उन्होंने बड़ी श्रद्धा से प्रणाम किया । उनकी देखादेखी करके सभी ने प्रणाम किया । गोपाल निराश होकर सीर जूकाकर खडा था । गुरुजी ने गोपाल की पाठपर गोपाल निराश होकर सीर झुकाकर खड़ा था ।

      गुरुजी ने गोपाल की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा , “ गोपाल , तुम्हारी तरह निरागस , निष्काम श्रद्धा हमारे मनमें नहीं है । भगवान श्रीकृष्ण ने दादा बनकर तुम्हारी सहायता की । तुम बडे श्रद्धालू और पुण्यवान हो । चलो आज हम तुम्हें घर तक पहुँचा देंगे । " सब मिलकर भगवान के नाम का जयजयकार करते जंगल की राह पर चल पड़े ।

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दुनिया का आठवा अजूबा

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