मोती कैसे बनता है . मोती की खेती

          वैसे तो सभी प्रकार के असली मोती,  कलचर्ड मोती यह समुद्र के ओएस्टर नाम के जीव से मिलते हैं । यह जीव एक तरह की मछली का ही प्रकार है, जिसे हम सिप सिप्ला कहते है। रेत के छोटे छोटे  कन या उसके जैसे किसी भी चीज केे बारीक पत्थर जब इस मछली के शरीर में जाते हैं , इनके  अंदर रह गए पत्थरों के ऊपर  यह जीव उसके शरीर में तैयार होने वाले एक चिकने पदार्थ का आवरण चढ़ाते जाता है । इस प्रक्रिया में ६ महीने से डेढ़ साल का वक्त बीत जाता है।  जितना ज्यादा वक्त उतना ज्यादा बढ़ा मोती बनता है।  यही असली प्राकृतिक मोती होता है।  कलचर्ड मोती इसी मछली से मिलते हैं।  इन दोनों प्रकार के मोतियों में सभी मोती ज्यादातर एक जैसे ही दिखते हैं।  उनमें का फर्क समझने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र का इस्तेमाल करना पड़ता है। कल्चर्ड मतलब  मछली से अपने आप तैयार होनेवाला मोती और दूसरा प्रकार मतलब मछली से तैयार करके लिया गया मोती। 

       

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पहला मोती किसने और कहा बनाया :-
    जापान में एक मिकिमाटो  इस व्यक्ति ने 30 वर्ष परिश्रम करके कलचर्ड मोती बाजार में लाए।  उसने आएस्टर oyster मछलियां उनसे मोती लेने का पहला प्रयोग प्रशांत के ओगो  उपसागर में शुरू किया।  इस सागर का पानी उष्ण कटिबंध से आने वाले ब्लैक करंट के प्रवाह की वजह से अमूमन गरम होता है।  आएस्टर मछली को ठंडा पानी नहीं चलता ठंडे पानी में यह धीरे धीरे मर जाते है या फिर गरम पानी की तरफ स्थलांतर  करते हैं गर्म पानी में उनकी अच्छी तरह से पैदावार हो सकती है।

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      कैसे बनाते है मोती :-
 आगे चलकर यह प्रयोग अनेकों जगह पर  मिकिमाटो ने शुरू किया।  पानी के तल से एस्टर निकाल के लाने का काम करने के लिए जापानी स्त्रियां 60  फुट गहराई में डूब कर हर बार केवल मुट्ठी भर सीप लाटी थी ।  यह सिप पानी से ऊपर निकालने के बाद उन्हें विशेष हतियार से जरासा खोलकर उनमें के रेत के कण डाल दिए जाते है। सिप्ला एक मछली सदृश्य जिव होता है। उस पर सावधानी पूर्वक शस्त्र प्रयोग करना पड़ता है।  रेत के  कण उनके शरीर में डालने के बाद में वह सिप फिर से बंद करके उन्हें एक जगह एक थाली में या बक्से में रखते हैं।   यहां बक्से एक तार के पिंजरे में रखा कर उस पिंजरे को समुद्र या झील के तल में टांगते हुए छोड़ देते हैं।  लगभग १ साल यहा पिंजरे उनके अंदर की मछलियों के साथ जतन किए जाते हैं।  बाद में जिस मछली से मोती मिल सकते हैं वह सिप  पिंजरे से निकाल लिए जाते हैं।  सीप मछली का बाहरी कवच  खोल कर उसमें से मोती निकाले जाते हैं।  बाद में आकार के अनुसार व रंग के अनुसार उन मोतिया का वर्गीकरण किया जाता है।  और कीमत तय की जाती है।  जो मोती गोल और तेजस्वी होते हैं उनको बाजार में अच्छी कीमत पर बेचा जाता  है।  दुनिया में हर तरफ इसी प्रकार से कल्चर्ड मोती तैयार किए जाते हैं।  जापान के मोती सबसे अच्छे माने जाते है। जापान  में से कल्चरड मोती प्रतिवर्ष दुनिया में भेजे जाते हैं और उनसे अच्छी कमाई की जाती है।
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आप भी कर सकते है मोती की खेती :-
     मोती सिर्फ महासागर में ही मिलते है ,सिर्फ समुद्र में ही मोती तैयार किये जा सकते है ऐसा नहीं है। मोती कहीभी तैयार किये जा सकते है। हमारे भारत देश में झिलोमे  , मानवनिर्मित छोटे तालाबोमे ,पानी की टंकियों में भी मोती तैयार करनेवाले लोग है। मोती बेचकर वे सालाना लाखो रुपयों की आमदनी कर लेते  है।  यथायोग्य प्रशिक्षण लेकर , थोड़ी इंवेस्टमेंट के साथ कल्चर्ड मोती उत्पादन का बिज़नेस शुरू किया जा सकता है।  मोती उत्पादन करने वाले किसान/उद्योजक  आयस्टर मछली सिप  खरीद कर लाते है।  कृत्रिम तालाब का निर्माण करते है।  पानी के तापमान और उसमे मौजूद जिव , जंतु, काई , पोषण मूल्यों , क्षार आदि घटको का ध्यान रखते है। और एक अवधि के बाद मोती उत्पादन करके अपने नजदीकी बाजार में बेचते है। उनके द्वारा बनाये गए मोतीयोको ३०० रुपयों से लेकर ५००० रुपयों तक की अच्छी कीमत मिलती है। 



     आजकल मोती को अलग अलग आकार में बनाया जा रहा है।  भगवान् गणेश , साईं , शिवलिंग ,ॐ ,स्वस्तिक , या किसीका नामक्षर में मोती बनाये जाते है।  इनकी कीमत ज्यादा होती है।  यह बनाने का तरीका वैसा ही है जैसा कल्चर्ड मोती का है।  मेहनत ज्यादा होती है ,फरक बस इतना है।  रेत के गोल कानो की जगह सिप के अंदर इच्छित मोती की प्रतिकृति डाली  जाती है।  जैसे अगर गणेशजी का मोती बनाना है तो गणेश की प्रतिमा एक छोटे से कण पर तराशकर वह कण सिप के पेट में छोड़ा जाता है। उसी कण पर सिप एक तरल पदार्थ का आवरण बनाना शुरू क्र देती है।  और मोती में गणेशजी की प्रतिमा उभरकर आजाती है।  है ना कमाल ??

मोती की खेती /उत्पादन के बारेमे अधिक जानने के लिए आप यह वीडियो देख सकते है। 
लिंक पर क्लिक करे 

https://www.youtube.com/watch?v=7vtkJaJ8v_M

https://www.youtube.com/watch?v=ZGFAjVGCebI


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